रमेश चन्द गुप्ता द्वारा लिखित कविता जो हमे प्रेणना देती है

आ फिर लौट चलें
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खाते हो तुम इस मिट्टी का
पर गाते गीत “लुटेरों” के।
निज “पुरखों” को भी भूल गए
और बने दास “गद्दारों” के।

कुछ इसका भी अनुमान करो
सोचो समझो मेरे भाई।
जब हुआ “धमाका” रेलों में
क्या मरे सिर्फ “हिंदू” भाई।

फिर क्यों निर्दोषों की हत्या
निर्मम हो कर तुम करते हो।
“जन्नत की हूरों” की खातिर
जीते जी खुद ही मरते हो।

यह देश तुम्हारा है”भैया”
ना छोड़ के तुम सुख पाओगे।
मारे-मारे तुम भटकोगे
फिर लौट के घर ही आओगे।

Bir Sc Gupta Hanumanganj 20170421_091221रमेश चंद्र गुप्त “भैया”
हैदराबाद।

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