अगर तमाम एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सही हुई तो समझा सकता है कि यूपी में बीजेपी के नए गैर यादव ओबीसी फॉमूले ने यहां पूरी तरह से काम किया है।
लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने इस रणनीति पर काम किया और यही कारण रहा कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की जगह प्रदेश में भाजपा की कमान ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य को दी। भाजपा ने करीब 40 फीसदी टिकट गैर-यादव ओबीसी जातियों को दिया।
बीजेपी गठबंधन सहयोगी अपना दल और सुहेल्देव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) का समर्थन ओबीसी में भाजपा के समर्थन का आधार हैं। अनुप्रिया पटेल की अपना दल(एस) कुर्मीस की पार्टी माना जाता है।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 प्रतिशत गैर-यादव ओबीसी ने 2014 के चुनावों में भाजपा के लिए वोट किया था। बीजेपी की यह जातीय गणित 2017 के चुनाव में भी जारी रहा सकता है। गैर-जाटव एससी मतदाताओं के लिए भाजपा ने इसी तरह की रणनीति अपनाई।
यूपी में जाटव मायावती की बसपा का वोट बैंक माना जाता है। लेकिन, 2014 के चुनाव में गैर-जाटव मतदाता का रूख बदल गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में, गैर-जाटव एससी मतदाताओं के 45 प्रतिशत वोट भाजपा को पड़े।
इससे पहले 53 प्रतिशत गैर-जाटव एससी वोट बैंक बसपा को जाता रहा है। बहरहाल सत्ता पर कौन काबिज होगा इसके लिए बस 11 मार्च की सुबह चुनाव परिणामों का इंतजार करना होगा।