उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव तक सत्ता और संगठन के बीच समन्वय पर केंद्रीय नेतृत्व की कड़ी निगरानी रहेगी। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष और केंद्रीय संगठन प्रभारी राधा मोहन सिंह लगातार राज्य के नेताओं के साथ संपर्क में रहेंगे और हर स्तर पर होने वाले फैसलों में भी शामिल होंगे। पार्टी ने राज्य में संगठनात्मक बदलाव की प्रक्रिया पूरी कर ली है और जरूरी हुआ तो राज्य मंत्रिपरिषद में भी फेरबदल किया जा सकता है।
भाजपा के लिए अगले साल की सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं और उसने अभी से अपनी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। कोरोना की दूसरी लहर में जनता को हुई दिक्कतों से बढ़ी नाराजगी और पार्टी में सत्ता व संगठन के बीच समन्वय में आई कमी को केंद्रीय नेतृत्व में हस्तक्षेप कर दूर किया है। साथ ही राज्य में विभिन्न स्तरों पर अंदरूनी मतभेद की गुत्थियां भी सुलझा ली है।
मंत्रिमंडल में हो सकता है छोटा फेरबदल:
राज्य में नौकरशाही से राजनीति में आए ए.के. शर्मा को लेकर लगाई जा रही अटकलों को विराम देते हुए उन्हें पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। सूत्रों के अनुसार, अब जरूरी हुआ तो मंत्रिपरिषद में छोटा सा फेरबदल किया जा सकता है, क्योंकि सहयोगी दलों का दबाव बना हुआ है। गौरतलब है कि केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही साफ कर दिया था कि राज्य में चुनाव तक सत्ता और संगठन में नेतृत्व स्तर पर कोई बदलाव नहीं किया जाएगा, हालांकि जहां जरूरी होगा वहां पार्टी अपने हिसाब से बदलाव करेगी।
2017 की ही तरह लड़ सकते हैं चुनाव:
राज्य में सत्ता में होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की रणनीति का मोटा खाका 2017 की तरह ही रहेगा, जिसमें केंद्रीय नेतृत्व की बनी रणनीति पर राज्य द्वारा अमल किया गया था। इस बार भी ऐसी ही तैयारी की जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी बिना किसी चेहरे के चुनाव मैदान में थी और उसने अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल की थी। सूत्रों के अनुसार ऐसे में पार्टी इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव में तो जाएगी लेकिन उसकी रणनीति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आएगा।
रणनीति को अंतिम रूप देना बाकी :
पार्टी को अगला मोर्चा राज्य में जिला पंचायत और जिला परिषद के चुनाव के लिए रणनीति को अंतिम रूप देना है। इसके बाद विधानसभा चुनाव की जमीनी तैयारी शुरू कर दी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव तक राज्य में तीन लोगों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहने वाली है। इनमें राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन), राज्य के संगठन प्रभारी और चुनाव के ठीक पहले घोषित होने वाले चुनाव प्रभारी शामिल रहेंगे। यह तीनों नेता राज्य और केंद्र के बीच सेतु का काम करेंगे और रणनीति पर अमल कराने की जिम्मेदारी भी उनकी ही होगी।