सोनभद्र । सोनभद्र जिले की चार विधानसभा सीटों में से दो ओबरा और दुद्धी विधानसभा में इस बार चुनाव अलग ही अंदाज में पहुंच गया हैं। इसका कारण दोनों सीटों का आरक्षण है। आरक्षण बदलने के कारण चुनाव की तैयारी कर रहे नेताओं के समीकरण बदल गए। दलों को आरक्षित वर्ग का प्रत्याशी खोजने में पसीने आ गए। अब हालात यह हैं कि प्रत्याशियों के लिए कम वक्त में अधिक से अधिक मतदाताओं तक पहुंचना 20-20 मैच खेलने जैसा हो गया है। दूसरी ओर प्रत्याशियों के लिए बड़ी चिंता की बात यह है कि प्रत्याशियों को क्षेत्र के मतदाता पहचानते भी नहीं हैं। ओबरा में यह समस्या ज्यादा है।
ओबरा और दुद्धी में सीटों का आरक्षण इसी साल तीन जनवरी को तय हो गया था। स्थानीय नेताओं ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने आठ फरवरी को अनुसूचित जनजाति के लिए तय आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला दिया, जबकि उच्चतम न्यायालय का फैसला आना अभी बाकी है। उच्च न्यायालय का फैसला आने के पहले तक सभी दलों के दावेदार सीट सामान्य होने की उम्मीद में अपना प्रचार करते रहे। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी टिकट के इच्छुक नेताओं का वॉल पेंटिंग नजर आ रही हैं। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राजनीतिक दलों में खलबली मची और प्रत्याशी की तलाश शुरू हुई।
हालत यह रही कि कुछ दलों में तो आरक्षित वर्ग का नेता ही नहीं मिला और आनन-फानन में दूसरे दलों से नेताओं को दल में शामिल कर टिकट दे दी गई। नामांकन भरने में भी कुछ समय लग गया। इस सब प्रकिया के चलते लगभग सभी दलों के प्रत्याशियों को जनसंपर्क के लिए महज 20 दिन का ही वक्त मिल पाया है। कुल मिलाकर दोनों सीटों के प्रत्याशियों के लिए चुनाव 20-20 मैच बन गया है। दूसरी ओर हम मतदाताओं के दृष्टिकोण से देखें तो उनके लिए सभी प्रत्याशी नए हैं। किसी ने दूसरी तो किसी ने तीसरी पंक्ति के नेता को प्रत्याशी बनाया है। कुछ ने तो एक साल में चार दल बदलने वाले को दावेदारी सौंपी है।
ओबरा विधानसभा में यह स्थिति ज्यादा ही गंभीर है। भाजपा, बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने जिन्हें टिकट दिया है, उन्हें विधानसभा क्षेत्र के लोग जानते ही नहीं हैं। प्रत्याशियों की कोई खास पहचान भी नहीं है। ओबरा विधान सभा के मंगरहबा गांव के रामगुलाब व जदूवीर को नहीं मालूम कि किस दल से कौन दावेदारी कर रहा है। चेहरा देखना तो दूर उन्हें प्रत्याशी का नाम भी नहीं मालूम है। इसी तरह सोढ़ो गांव के रामविचार और बुजुर्ग महिला फूलमत को भी प्रत्याशी के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जबकि जिले के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के लोगों की अपनी-अपनी समस्याएं और मुद्दे हैं। ग्रामीण इलाके के लोगों को जहां पेयजल, सेहत और शिक्षा की दरकार है तो वहीं शहरी क्षेत्र यानी परियोजना नगर के लोगों के मुद्दे स्थानीय स्तर के न होकर राज्य और केंद्र स्तर के हैं।
क्योंकि परियोजना नगर क्षेत्र में रह रहे लोगों को लगभग सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। दुद्धी विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों के लिए भी चुनाव 20-20 मैच जैसा ही है, लेकिन इस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे प्रमुख दलों के अधिकतर प्रत्याशियों को जनता पहचानती है। फिर चाहे कुछ प्रत्याशियों की पहचान खराब छवि के कारण क्यों न हो। दुद्धी विधानसभा क्षेत्र का प्रमुख मुद्दा दुद्धी को जिला बनाना है।