उत्तर प्रदेश में सीधे गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने के लिए दिशा निर्देश स्वीकृत कर दिए गए हैं। सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में गन्ना विकास व चीनी उद्योग विभाग द्वारा इस बाबत लाए गए प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई। इस गाइडलाइन में कहा गया है कि गन्ने के रस से बने इथेनॉल का सिर्फ पेट्रोल में मिलाने के लिए ही प्रयोग किया जाएगा।
टैंकर से गन्ने के रस की ढुलाई के दौरान गन्ने के रस में अपमिश्रण होने की प्रबल सम्भावना रहती है इसलिए ऐसी डिस्टलरियां जिनके पास सहयोगी चीनी मिल नहीं है। उन्हें गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने की इजाजत नहीं होगी। गन्ने के रस और शुगर सिरप से इथेनॉल बनाने की सूरत में संबंधित मिल में गन्ना पेराई की उस मात्रा विशेष से चीनी या शीरे का उत्पादन नहीं होगा।
इसलिए गन्ना मूल्य भुगतान करवाने के लिए इथेनॉल उत्पादन के वास्ते प्रयोग किए गए गन्ने के रस या शुगर सिरप के उत्पादन के लिए प्रयुक्त गन्ना पेराई की मात्रा पर चीनी के बजाए उत्पादित किए गए इथेनॉल को टैग किए जाने की बाध्यता होगी। डिस्टलरी यूनिट को भी चीनी मिलों की ही तरह गन्ने के आवंटन और गन्ना मूल्य भुगतान के संबंध में समय-समय पर जारी दिशा निर्देशों के अनुसार निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा।
अब राज्य की ऐसी सरकारी व निजी क्षेत्र की चीनी मिलें जिनके पास पहले से डिस्टलरी है या डिस्टलरी लगाने की गुंजाइश है, उन मिलों में सीधे गन्ने के रस से इथेनॉल बनाया जा सकेगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार फिलहाल निजी क्षेत्र की तीन या चार चीनी मिलें ही ऐसी हैं, जिन्होंने सीधे गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने की तैयारी पूरी कर ली है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम की गोरखपुर स्थित पिपराइच चीनी मिल में सीधे गन्ने के रस से इथेनॉल बनाने के लिए नई डिस्टलरी लगाई जाएगी। इस साल दिसम्बर से वहां सीधे गन्ने के रस से इथेनॉल का उत्पादन शुरू होने की उम्मीद जताई गई है। अभी तक राज्य में बी. हैवी और सी. हैवी शीरे से इथेनॉल बनाया जा रहा था। राज्य की 40 इकाइयों में अभी बी. हैवी शीरे से इथेनॉल बनया जाता है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश इथेनॉल उत्पादन में नम्बर वन है। चालू पेराई सत्र में प्रदेश में कुल 150 करोड़ लीटर इथेनॉल बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इथेनॉल का इस्तेमाल वाहनों के हरित ईंधन के लिए किया जाता है, इसे पेट्रोल में मिलाया जाता है ताकि प्रदूषण न फैले।