तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ के फैसले के बाद इस मसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक को मंजूर करने पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह देखना होगा कि उन मुस्लिम महिलाओं का क्या होगा, जो फैसले के बाद भी तीन तलाक को मंजूर करती हैं। जिलानी ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हमने पहले भी सम्मान किया है, और आज के फैसले के बारे में भी हम सोचेंगे। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि हम फैसले का सम्मान करते हैं
उन्होंने कहा कि अब तक तीन तलाक की वजह से मुस्लिम औरतों पर जुल्म होते रहे हैं, जबकि इस्लाम में कहीं भी तीन तलाक की व्यवस्था नहीं है. यह सिर्फ कुछ तथाकथित धर्मगुरुओं की बनाई हुई अन्यायपूर्ण व्यवस्था थी, जिसने लाखों औरतों की जिंदगी बरबाद की है. इस फैसले से मुस्लिम औरतों को एक नई उम्मीद मिली है.
शाइस्ता ने कहा, ”उच्चतम न्यायालय ने शरीयत से छेड़छाड़ किये बगैर छह महीने के अंदर संसद में कानून बनाये जाने की बात कही है. मुझे विश्वास है कि यह कानून बिना किसी दबाव के बनेगा और मुस्लिम महिलाओं को खुशहाली का रास्ता देगा.” तीन तलाक के मुकदमे में प्रमुख पक्षकार रहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसी तरह की टिप्पणी से इनकार करते हुए कहा कि बोर्ड मिल बैठकर आगे का कदम तय करेगा.
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि अब देश में तीन तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय को रोका जा सकेगा.
उन्होंने कहा, ”हजरत मुहम्मद साहब के जमाने में भी तीन तलाक की व्यवस्था नहीं थी. हम चाहते हैं कि जिस प्रकार कानून बनाकर सती प्रथा को खत्म किया गया, वैसे ही तीन तलाक के खिलाफ भी सख्त कानून बने. मैं संसद से गुजारिश करता हूं कि वह इंसानियत से जुड़े इस मसले पर नैसर्गिक न्याय के तकाजे के अनुरूप कानून बनाए.”