बिहार में दो मरीजों में ब्लैक और व्हाइट फंगस दोनों मिले हैं। पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती मरीजों की जब जांच की गई तो उनमें से दो मरीजों में ब्लैक और व्हाइट दोनों फंगस पाया गया। फंगस मिलने के बाद इसकी मेडिकल स्टडी की जा रही है।
ईएनटी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. राकेश सिंह ने बताया कि मरीज के नाक से होते हुए दिमाग के बीच में यह जाल की तरह बना लिया था। जिसे सर्जरी कर बाहर निकाला गया। मरीज की स्थिति बेहतर है।
मरीजों में मिले फंगस को डाक्टरों की टीम ने सफलतापूर्वक ऑपरेशन कर बाहर निकाला । संस्थान के अधीक्षक डा. मनीष मंडल ने बताया कि ऑपरेशन बड़ा जटिल था। मरीज में एक साथ ब्लैक और व्हाइट फंगस पाए जाने की मेडिकल स्टडी की जा रही है। डॉ मंडल ने कहा कि ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस से ज्यादा खतरनाक होता है। यह मरीज के नाक से होते हुए दिमाग तक पहुंच जाने के बाद खतरनाक हो जाता है।
हालांकि व्हाइट फंगस तब खतरनाक हो जाता है जब यह नाक से होते हुए दिमाग में पहुंच जाए। डायबिटीज से ग्रसित मरीजों में फंगस होने की संभावना ज्यादा है। माइक्त्रसेलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर शैलेश ने बताया कि फंगस उन्हीं मरीजों को हो सकता है जो पहले कोविड पेशेंट रह चुके हैं और आईसीयू में भर्ती रहें हो।
एस्ट्रॉयड की मात्रा के अधिक सेवन किया हो उन्हें फंगस होने का खतरा ज्यादा है। आईजीआईएमएस के पैथोलॉजी विभाग के डाक्टर संजीत ने बताया कि एक ही मरीज में दोनों फंगस मिलना हमलोगों के लिए भी अध्ययन का विषय है। अभी मेडिकल स्टडी के बाद ही साफ तौर पर कुछ कहा जा सकेगा।
बता दें अभी तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, आईसीएमआर और राज्य सरकारों का ध्यान ब्लैक फंगस पर था, लेकिन हाल ही में पता चला है कि एक ही मरीज में ब्लैक और व्हाइट फंगस दोनों एकसाथ मिल रहे हैं।
चिकित्सकी लिहाज से यह स्थिति काफी गंभीर होती है जिसमें मौत की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। उधर कोरोना महामारी से ब्लैक फंगस की तुलना करते हुए बताया है कि वर्तमान में ब्लैक फंगस का हर दूसरा या तीसरा मरीज बचा पाना मुश्किल हो रहा है।
दिल्ली सहित कुछ राज्यों में कोरोना से 49 फीसदी अधिक ब्लैक फंगस की मृत्युदर दर्ज की गई है। कोरोना की वर्तमान मृत्युदर 1.12 फीसदी है। जबकि ब्लैक फंगस की मृत्युदर कहीं 30 से 40 तो कहीं 40 से 50 फीसदी तक दर्ज की गई है।