मुजफ्फरपुर में प्राइवेट स्कूलों के 55 फीसदी शिक्षकों के वेतन में कटौती की गई है। वहीं, 54 फीसदी शिक्षकों के पास आय का कोई अन्य माध्यम नहीं है। कोरोना महामारी में 50 फीसदी से अधिक प्राइवेट स्कूलों में नए नामांकन में कमी आयी है। स्कूली शिक्षा पर काम करने वाले सगंठन सीएसएसफ की रिपोर्ट के यह आंकड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार कम फीस वाले 65 फीसदी स्कूलों ने शिक्षकों का वेतन कोरोना काल में रोक दिया।
बिहार के विभिन्न जिले समेत पूरे देश में यह सर्वे कराया गया था। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए पाबंदियों की वजह से अधिकतर निजी स्कूलों में नामांकन में 20-50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से स्कूलों ने शिक्षकों के वेतन में कटौती करना शुरू कर दिया है। यह दावा गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा पर काम करने वाले संगठन सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (सीएसएफ) की रिपोर्ट में किया गया है। यह रिपोर्ट बिहार समेत 20 राज्यों के अभिभावकों, स्कूल प्रशासक और शिक्षक के बातचीत के आधार पर किए गए अध्ययन पर आधारित है।
निजी स्कूलों के तकरीबन 55 फीसदी शिक्षकों के वेतन में लॉकडाउन के दौरान कटौती की गई है। वहीं कम फीस वाले स्कूलों द्वारा करीब 65 फीसदी शिक्षकों की सैलरी रोक दी गई थी। 37 फीसदी शिक्षकों का वेतन ज्यादा फीस वाले स्कूलों ने रोक दिया है। तकरीबन 54 फीसदी शिक्षकों के पास आय का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 50-60 फीसदी अभिभावकों ने ही फीस का भगुतान किया है। इसमें 20 फीसदी माता-पिता ही टेक्नोलॉजी और बुनियादी ढांचे पर खर्च में वृद्धि की सूचना दी और 15 फीसदी ने शिक्षा खर्च में वृद्धि की सूचना दी है।
जिले में बंद हो गए 100 से अधिक छोटे स्कूल
जिले में भी प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने कोरोना के दौरान स्कूलों पर पड़ी मार का सर्वे कराया था। इसमें जिले में 100 से अधिक छोटे स्कूल पूरी तरह से बंद हो गए। वहीं, गली-मोहल्लों में चल रहे लगभग 150 प्ले स्कूलों पर ताला लटक गया। इसके साथ ही 50 स्कूल ऐसे हैं जो कोरोना काल में बंदी के कगार पर है और जिन्होंने बिहार शिक्षा परियोजना को रिपोर्ट भी सौंपी है।
एक हजार से अधिक शिक्षक हो गए कोरोना काल में बेरोजगार
जिले में कोरोना काल में एक हजार से अधिक शिक्षक बेरोजगार हो गए। इसमें छोटे-बड़े सभी स्कूल शामिल हैं जो कोरोना काल में चल रहे हैं लेकिन उन स्कूलों से भी 30-50 फीसदी तक शिक्षक हटाए गए हैं। ये आंकड़े वे हैं जो एसोसिएशन की ओर से जारी किए गए हैं और सीएसएफ की रिपोर्ट भी बयां करते हैं। इसमें बड़ी संख्या में शिक्षक दवा से लेकर अन्य दूकानों में काम करने को मजबूर हैं।