मान्यता: यूपी के इस मंदिर में आज भी महाभारत काल का श्रेष्ठ योद्धा अश्वत्थामा करता है पूजा!

महाभारत के अश्वत्थामा के बारे में तो आप जानते ही होंगे। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की गिनती महाभारत काल के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती है। लोगों की मान्यता है कि वह आज भी जीवित हैं। बताया जाता है कि अश्वत्थामा एक श्राप के कारण अमर हैं और जंगलों में भटक रहे हैं। उनके शरीर पर बड़े-बड़े घाव हैं।

कानपुर में कुछ लोग ने दावा किया है कि अश्वत्थामा यहां गंगा किनारे रहते हैं और वह रोज सुबह कानपुर स्थित खेरेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा भी करते हैं। मंदिर के आस-पास रहने वाले लोग और पुजारी इस बात का जिक्र करते हैं कि मंदिर पर रोज सुबह सफेद फूल अर्पित मिलता है। कई लोगों ने तो सफेद छवि देखने का दावा कर चुके हैं। देखने वाले बताते हैं कि छवि काफी विशालकाय है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इसके बाद बेहोश होने या सब कुछ भूल जाने का भी दावा करते हैं। हालांकि, लाइव हिन्दुस्तान इसकी पुष्टि नहीं करता है।

कुछ अन्य लोगों ने बताया कि बहुत समय पहले यहां गंगा किनारे गायें एक स्थान पर खड़ी हो जाती थीं। फिर उस स्थान पर खुदवाई कराई गई, तो शिवलिंग मिला, जिसे उठाने की कोशिश की गई, लेकिन लोग हिला भी नहीं सके। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद रोज सुबह दरवाजा खुलने से पहले शिवलिंग पर सफेद फूल अर्पित मिलते हैं।

विंध्यांचल की पहाड़ियों में आज भी है अश्वत्थामा की तपस्थली
मध्य प्रदेश में महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्यांचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव विराजमान हैं। माना जाता है कि यह अश्वत्थामा की तपस्थली है। ऐसी मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं। आपको बता दें कि मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड के जंगलों में आज भी अश्वत्थामा को देखे जाने की चर्चाएं होती रहती हैं।

कैसे हुआ अश्वत्थामा का जन्म?
महाभारत युद्ध से पुर्व गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानो में भ्रमण करते हुए हिमालय (ऋषिकेश) पहुंचे। वहां तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा में तपेश्वर नामक स्वय्मभू शिवलिंग है। यहां गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी माता कृपि ने शिव की तपस्या की। इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बालक को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके गले से हिनहिनाने सी आवाज हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी। जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।क्यों मिला था अश्वत्थामा को श्राप?
पौराणिक शास्त्र के अनुसार, अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है। एकबार महाभारत के युद्घ में द्रोणाचार्य का वध करने के लिए पाण्डवों ने झूठी अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मर चुका है। इससे द्रोणाचार्य शोक में डूब गए और पाण्डवों ने मौका देखकर द्रोणाचार्य का वध कर दिया। अपने पिता की छल से हुई हत्या का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों की हत्या कर दी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे ये श्राप दिया।

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