इंदकूट गुफा… राजगीर शहर से करीब सात किलोमीटर दूर सीआरपीएफ कैंप के पास राजगीर-गया पहाड़ की हाथीमत्था चोटी पर स्थित है। मुख्य गुफा 65 फीट लंबी है। इसमें एक छोटी सुरंग है। यह शायद मगध क्षेत्र की सबसे संकरी सुरंग है। इसकी लंबाई 50 फीट के करीब है। यह इतनी संकरी है कि इसमें एक ही व्यक्ति लेटकर किसी तरह आर-पार हो सकता है।
नालंदा की साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ की टीम व पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे एक हफ्ते पहले लोगों के समक्ष लाया है। हालांकि, स्थानीय लोगों ने बताया कि उनलोगों ने कई बार सुरंग आर-पार की है। हाथीमत्था खड़ी चोटी है। इस पर चढ़ना अन्य चोटियों जैसा आसान तो नहीं, पर काफी रोमांचक है। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने यहां के स्थानीय लोगों (इंदवस्सा) को उपदेश दिया था। गुफा के आसपास पहाड़ पर इंद्रजौ के पौधों की अधिकता है।
पुरातत्ववेत्ता तूफैल अहमद खान सूरी व इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह कहते हैं- इंदकूट गुफा का वर्णन कई किताबों में है। बौद्ध ग्रंथ ‘संयुक्त निकाय’ के पेज 206, ‘सारपत्थपकासिनी’ के पेज 300 के अलावा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा वर्ष 1936 में प्रकाशित डॉ. बिमलचूर्णला रचित ‘राजगृह इन एनसिएंट लिटरेचर’ के पेज 15 पर इस गुफा का वर्णन है। इनमें कहा गया है कि गौतम बुद्ध ने स्थानीय लोगों को जीवन रहस्य के बारे में जानकारी दी थी।
राजगृह की सबसे ऊंची चोटी
राजगृह की रत्नागिरि पर स्थित अशोक स्तंभ के अवशेष वाली चोटी 1,243 फीट ऊंची है। जबकि इंदकूट गुफा वाली हाथीमत्था चोटी 1,300 फीट ऊंची है। इसे राजगृह के समीप की सबसे ऊंची चोटी कही जा कहती है। सिमरौर के श्री यादव, सुधीर यादव, टिंकु साव, जगजीवनपुर गांव के चंदु राजवंशी, दिनेश राजवंशी, मेढ़ू राजवंशी व अन्य ने बताया कि उनलोगों ने इस चोटी का कई बार भ्रमण किया है। सबसे संकीर्ण गुफा को आर-पार भी किया है।