स्वास्थ विभाग में घोटाले रोकने में अन्य सरकारों की तरह योगी सरकार भी असफल साबित हो रही है। यही वजह है कि आज भी स्वास्थ्य विभाग में आने वाले बजट का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जमकर घोटाले हो रहे हैं और पकड़े जाने के बाद भी दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो रही है।मामला अक्टूबर 2018 का है जिसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक पंकज कुमार ने जिलाधिकारी को करोड़ों रुपये के घोटाले की जानकारी बिदुवार भेजते हुए अपने स्तर से जांच कराने के लिए पत्र भेजा था। जिलाधिकारी ने भी इस संबंध में टीम गठित की थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग द्वारा किसी प्रकार की कोई सूचना ही टीम को नहीं दी गई। टीम के सदस्य के रूप में मुख्य कोषाधिकारी ने कर्मचारियों के उत्तरदायित्व निर्धारित करने तथा पटेल सहायक एवं संबंधित अधिकारी की आख्या मांगने के लिए पत्र भेजते रहें, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। मुख्य कोषाधिकारी ने जिलाधिकारी के नाराज होने का हवाला देते हुए 19 जून तक प्रकरण से संबंधित लोगों को कार्यालय में उपस्थित होने को कहा था, लेकिन निर्धारित तिथि पर कोई हाजिर भी नहीं होगा। प्रथम ²ष्टया तो घोटाले की पुष्टि यहीं से हो जाती है। लेकिन घोटाले बाजों पर बड़े-बड़े रसूखदारों के हाथ होने से उन पर कार्रवाई में देर हो रही है। ये था मामला वित्तीय वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में सीएमओ कार्यालय मैं उस फर्म से दवा खरीदी गई जो पहले से ही प्रतिबंधित थी यही नहीं स्वीकृत बजट से भी नौ लाख रुपये अधिक धनराशि उस प्रतिबंधित फार्म को भुगतान कर दिया गया था। इसके अलावा विभिन्न फर्मो को बिना टेंडर व कोटेशन तथा बिना बिल-वाउचर के एक करोड़ 63 लाख 24 हजार रुपये का भुगतान गलत तरीके से कर दिया गया था। इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नरहीं में नियुक्त प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. आनंद और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र वैना में नियुक्त ब्लॉक एकाउंट मैनेजर अभिनव राय की भूमिका मिली थी। दोनों ने मिलीभगत कर व्यक्तिगत खाते में ही सरकारी धन भेज गबन किया था। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2017-18 में बलिया में पांच फर्मो को बिना बिल-वाउचर व बिना सपोर्टिंग पेपर के अनियमित रूप से करीब 25 लाख का भुगतान कर दिया गया था, जो एक गंभीर अनियमितता थी। एमडी सख्त, डीएम भी नाराज, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई |