बढ़ रहा गर्दन का दर्द, यह करेंगे तो मिलेगा आराम…

गर्दन में दर्द होना एक आम समस्या बन गई है और अब तो इस बीमारी का उम्र से भी कोई लेना देना नहीं रहा। पिछले कुछ सालों में अगर हम गौर करें तो सरवाइकल स्पॉन्डलाइटिस के रोगियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसके कई कारण हो सकते है जैसे लंबे समय तक डेस्क वर्क या पढ़ाई लिखाई करना कठोर तकिए का इस्तेमाल करना टेडे मेढे होकर सोना अथवा लेटकर टीवी देखना आदि। 

गर्दन में दर्द अर्थात सरवाइकल स्पॉन्डलाइटिस किसी भी उम्र वाले व्यक्ति को कभी भी किसी भी समय हो सकता है।

 बच्चों युवाओं एवं बुजुर्गों में सरवाइकल स्पॉडिलाइटिस या गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोतरी और गर्दन के हड्डियों के बीच के इंटरवर्टिब्रल डिस्क के अपने स्थान से सरक जाने की वजह से होता है। वृद्धों में सरवाइकल मेरुदंड में डीजेनरेटिव बदलाव साधारण किया है और सामान्यतया इसके कोई लक्षण भी नहीं उभरते।

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दर्द की शुरुआत के कई सामान्य कारण

लगातार लंबे समय तक कम्प्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहना, बेसिक या मोबाइल फोन पर गर्दन झुकाकर देर तक बात करना, लेटकर टीवी देखना लंबे समय तक गर्दन को झुकाकर पढ़ाई लिखाई व अन्य कार्य करना, जोर से गर्दन को झटका देना अथवा किसी कारण से गर्दन पर जोर का झटका पडऩा ज्यादा ऊंचे और कठोर तकिए का इस्तेमाल, लगातार ऐसा काम करना जिनमें अधिक भार उठाना, ज्यादा झुकना, मुडना पड़ता है। 

तनाव उम्र बढऩे के साथ हड्डियां, अधिक लंबे समय तक ड्राइविंग करना, अधिक लंबे समय तक गद्दीदार कुर्सियों पर समय व्यतीत करना, केल्शियम की कमी विलासिपूर्ण जीवन शैली नियमित कसरत व व्यायाम नहीं करना, कोई प्रैक्चर होना, मांसपेशियों में ऐंठन, अकडऩ और सिकुड़ जाना, पीठ को सपोर्ट करने वाली मांसपेशियों या जोड़ो में खिचाव आना उनका फटना।

डीजेनरेटिव परिवर्तनों के कारण होने वाले सरवाइकल

स्पॉन्डिलाइटिस में किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं देते और ना ही रोगी को कोई विशेष असुविधा महसूस होती है। सामान्यत: लक्षण तभी दिखाई देते है जब सरवाइकल नस या मेरुदंड में दबाव या खिंचाव होता है। 

ऐसी स्थिति में ये समस्याएं नजर आती है। गर्दन में दर्द, जो कंधों और बाजू तक जाता हो, गर्दन में अकडऩ जिससे सिर हिलाने में तकलीफ होती हो, सिरदर्द विशेषकर सिर के पीछे के भाग में, कंधों, बाजुओं और हाथ में झुनझुनाहट, असंवेदनशीलता या जलन, पतला होना, मांसपेशियों में कमजोरी या कंधे बाह या हाथ की मांसपेशियों का पतला होना, निचले अंगों में कमजोरी आना और मूत्राशय और मलद्वार पर नियंत्रण न रहना आदि।

स्पॉन्डिलाइटिस से बचाव के तरीके

हमारे रहन सहन के तौर तरीकों में सुधार लाकर आघ्ैर सही मुद्राएं अपनाकर इस समस्या से काफी हद तक बचा जा सकता है। सोते समय बेहतर होगा कि तकियों का प्रयोग न करें आघ्ैर अगर करना ही हो तो कम ऊंचाई वाले पतले रुई के तकिये का प्रयोग करें। बिस्तर का समतल होना भी जरूरी है। 

कठोर तकिये एवं फोम के गद्देदार बिस्तर का प्रयोग न करें। ये गर्दन में दर्द का कारण बन सकते है, बिसतर पर लेटकर पढऩे की आदत से परहेज करें, बैठकर ही पढ़े, लेटकर टीवी न देखें, टेलीविजन देखते समय कुर्सी पर आराम से सीधे बैठकर और पर्याप्त दूरी से टीवी देखे, लगातार कम्प्यूटर पर न बैठें, अगर ऐसा करना जरूरी है तो अपनी गर्दन को थोड़ी-थोड़ी देर में इधर उधर घुमा लें, कम्प्यूटर पर काम करने वालों को चाहिए कि मॉनिडर अपनी आंखों के स्तर पर रखें बिना गर्दन को झुकाए मोडे घुमाए काम करें लगातार गर्दन सिर को झुकाकर काम न करें अगर ये सब कार्य करने ही हो तो बीच-बीच में उठकर टहल लिया करें, टेलीफोन पर बात करते समय रिसीवर को गर्दन और कंधे के बीच दबाकर बात करने से गर्दन की मासपेशियों में अनावश्यक तनाव और दर्द पैदा होता है। 

इसलिए गर्दन सीध रखते हुए रिसीवर को हाथ में पकड़कर बात करे, दुपहिया वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग नहीं करें, रोगी व्यक्ति भार न उठाए। जब तक दर्द सामान्य अथवा पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता तब तक सरवाइकल कॉलर के उपयोग से गर्दन का हिलना झुलना नियंत्रण रखना चाहिए। तीव्र दर्द के हालात में गर्म पानी में नमक डालकर सिकाई करें यह क्रम दिन में कम से कम 3-4 बाद अवश्य करें। 

दर्द को जल्द आराम देने में यह काफी लाभदायक है। बगैर डॉक्टरी सलाह के कोई भी दर्द निवारक दवा न लें, जब तक लगे की यह दर्द गंभीर होता जा रहा है तब ऐसी स्थिति में किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए। 

गर्दन शरीर को बेहद नाजुक और अहम हिस्सा होता है अत: किसी भी अप्रशिक्षित व्यक्ति या पहलवान से गर्दन की मालिस या सिकाई कभी भी न करवाएं ऐसा करने से हाथ पैरो में हमेशा के लिए कमजोरी आ सकती है। फिजियोथेरेपिस्ट के बताए अनुसार ही गर्दन का व्यायाम करें।

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