भारतीय रेल की तस्वीर बदलने के लिए केन्द्र की मोदी सरकार में सुरेश प्रभु को जिम्मेदारी दी गई. लेकिन बीते तीन साल के दौरान मंत्रालय में किसी बड़े बदलाव का इंतजार अभी तक किया जा रहा है. इसी कोशिश में रेल मंत्रालय को मौजूदा वित्त वर्ष से वार्षिक बजट बनाने की जिम्मेदारी लेकर सीधे वित्त मंत्रालय को दे दी गई. इसके बावजूद भारतीय रेल को ट्रैक पर लाने की कोई भी कोशिशों रंग लाती नहीं दिख रही है. बीते कुछ महीनों से हो रहे रेल हादसे और दिन प्रति दिन खराब होती यात्री सुविधाओं से मोदी सरकार दबाव में हैं कि वह रेल को नया मंत्री दें नहीं 2022 के टार्गेट से पहले 2019 के चुनावों में उसकी साख पर बट्टा लगा रहेगा.
जानिए सुरेश प्रभु कि क्या विफलता भारी पड़ी
रेल की हकीकत वेटिंग टिकट
देश डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है. मोदी सरकार भी कैशलेस अर्थव्यवस्था पर जोर दे रहा है. लेकिन जब आप रेल का टिकट बुक करने बैठते हैं तो बहुत ही भाग्यशाली किस्म के लोगों के हाथ ही कंफर्म टिकट आता है. अधिकतर लोग वेटिंग टिकट ही बुक कर पाते हैं और यात्रा के अंतिम दौर तक पीएनआर स्टेटस चेक करते रहते हैं. इसके सुधार के लिए कुछ योजना रेलवे ने चलाई खासकर ‘डायनमिक फेयर’ और तत्तकाल टिकट.
तत्काल टिकट पर लाख पाबंदियों के बावजूद आसानी से टिकट हासिल करना टेढ़ी खीर है जबकि डायनमिक फेयर प्रणाली में यह आसान है. लेकिन यह इतना महंगा है कि आम आदमी के लिए मुफीद नहीं लगता. जेटली आपसे अनुरोध है कि कोई ऐसी योजना लाएं कि आम आदमी भी इमरजेंसी में रेलवे की बेहतर सुविधा का इस्तेमाल कर सके.
यात्रियों की भीड़
भारतीय रेल से देश में करीब 2.5 करोड़ लोग प्रतिदिन सफर करते हैं. यही वजह है कि आप को रेल यात्रा के हर मौके पर भीड़ ही भीड़ देखने को मिलती है. सबसे पहले टिकट काउंटर पर, वेटिंग रूम में, ट्रेन में सवार होने के लिए (खासकर जनरल डिब्बे), फूड स्टॉल पर, पीने वाले पानी के लिए नलों तक लंबी-लंबी लाइन लगी रहती है. इस भीड़ को खत्म करने के लिए जरूरत पूरे रेल ढ़ांचे को बदलने की थी लेकिन सुरेश प्रभु के अभीतक के कार्यकाल में इसकी शुरुआत नहीं की जा सकी है.