पितृपक्ष का समय चल रहा है। यही वह समय होता है कि जब हम अपने उन पूर्वजों या परिवार के उन लोगों जो किसी कारणवश हमसे बहुत दूर जा चुके हैं , उनकी आत्मा की शांति के लिए कुछ कर्म किए जाते हैं। अकाल मृत्यु, आत्महत्या, हत्या और कुंवारे, आजीवन संन्यासी लोगों को श्राद्ध अलग तिथियों में होता है। श्राद्ध पक्ष में ऐसी मृत्यु प्राप्त करने वाले लोगों के लिए तिथियां दी गई हैं।इस श्राद्ध को दुर्मरणा श्राद्ध कहते हैं, जिसकी तिथि 29 सितंबर है। इसके अलावा 27 सितंबर को कुंवारेपन में मृत्यु हो जाना, आजीवन संन्यासी रहकर मृत्यु प्राप्त करने वाले लोगों का श्राद्ध किया जा सकता है। परिवार में भतीजा, भांजा, बहन आदि भी श्राद्ध कर सकते हैं। इसे दादशी का श्राद्ध कहा जाता है।
ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। इसके अलावा जो अतृप्त आत्माएं होती हैं, उनके लिए हवन, दान या वो जो वस्तुएं पसंद करते हैं उनका दान कर उनकी आत्मा को शांति प्रदान की जा सकती है।
इस बार यह तिथि 29 सितंबर गुरुवार पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में है। यह तिथि 28 सितंबर की रात्रि दो बजकर 42 मिनट से प्रारंभ होकर 29 सितंबर की रात्रि तीन बजकर 18 मिनट तक है। पूजन का समय सुबह सात बजकर 20 मिनट से 11 बजकर पांच मिनट तक है। इस समय पर पूजन के रूप में ब्राह्मण द्वारा महामृत्युंजय का जाप व पितृ गायत्री 51 माला या फिर 21 माला का जाप कर हवन कराएं। तीन, पांच या सात ब्राह्मणों को भोजन कराएं। सफेद वस्त्रों का दान करें। दान स्वरूप दक्षिणा दें। ब्राह्मणों को वो भोजन कराएं जो मृतक जातक को पसंद थे।