नई दिल्ली। आतंकवादियों की फंडिंग करने के मामले में पाकिस्तान तीन महीने के नोटिस पर है। तीन महीने के अंदर यदि पाकिस्तान ने आतंकी फंडिंग रोकने को ठोस कार्रवाई नहीं की, तो उसे कई तरह के आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। इस पर लगाम लगाने को बने अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की पिछले हफ्ते पेरिस में हुई बैठक में तीन महीने का नोटिस देने का फैसला हुआ है।
इस सिलसिले में भारत की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव का अमेरिका और यूरोपीय देशों ने खुलकर समर्थन किया।
दरअसल भारत ने पिछले साल अक्टूबर में ही पेरिस में हुई एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को हो रही भारी फंडिंग का मुद्दा उठाया था। भारत का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सूची में डाले गए लश्कर-ए-तैयबा, जमात उद दावा और जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं।
वे आतंकी हमलों के लिए फंड इकट्ठा कर रहे हैं। इसके लिए भारत ने कई दस्तावेज भी पेश किए थे। भारत के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए एफएटीएफ ने इसकी जांच का फैसला किया और एशिया पैसिफिक ग्र्रुप को इस पर तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन एशिया पैसिफिक ग्र्रुप के सदस्यों को पाकिस्तान प्रभावित करने में सफल रहा और रिपोर्ट ही तैयार नहीं होने दी।
अमेरिका और यूरोपीय देश हमारे साथ
भारत ने पिछले हफ्ते यह मुद्दा फिर उठाया तो पाकिस्तान की ओर से इसका तीखा विरोध हुआ। पाकिस्तान की कोशिश थी कि इस मुद्दे को तकनीकी पहलुओं में उलझाया जाए। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों के भारत के प्रस्ताव पर मिले समर्थन से पाकिस्तान की मंशा सफल नहीं हो सकी। एफएटीएफ बैठक की अध्यक्षता कर रहे स्पेन के वेगा सेरानो ने पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग पूरी तरह रोकने के लिए तीन महीने का नोटिस थमा दिया।
लग सकता है आर्थिक प्रतिबंध
तीन महीने में पाकिस्तान को यह बताना होगा कि उसने आतंकी संगठनों की फंडिंग रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाया है? साथ ही उसे यह भी भरोसा देना पड़ेगा कि पाकिस्तान के भीतर किसी भी तरह से आतंकी संगठन फंड नहीं जुटा रहे हैं। यदि पाकिस्तान एफएटीएफ को संतुष्ट करने में विफल रहा तो उसे कई तरह के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
1989 से काम कर रहा संगठन
दरअसल 1989 में जी-7 देशों ने एफएटीएफ की स्थापना ड्रग और हथियारों की तस्करी जैसे संगठित अपराधी गिरोहों की ओर की जाने वाली मनी लांड्रिंग रोकने के लिए की थी। लेकिन 2001 में आतंकी फंडिंग को भी इसमें शामिल कर लिया गया। तब से अब तक आतंकी फंडिंग को रोकना ही इसका मुख्य काम हो गया है। 22-24 फरवरी को हुई बैठक भी पूरी तरह से आतंकी फंडिंग पर ही केंद्रित थी। इसमें आतंकी फंडिंग को रोकने के लिए कई फैसले लिये गए और सदस्य देशों को इन्हें लागू करने का निर्देश दिया गया।