नई दिल्ली। मालदीव के एक फैसले से भारत की मुश्किल बढ़ सकती है। मालदीव ने 26 अटॉल में से एक फाफू को सऊदी अरब को बेचने का फैसला किया है।
सरकार के फैसले का विरोध करते हुए विपक्षी दलों का कहना है कि इससे वहाबी विचारधारा को और मजबूत होने का मौका मिलेगा, जिससे मालदीव में आतंकवाद का प्रचार-प्रसार हो सकता है। वर्ष 2015 में मालदीव सरकार ने एक फैसला किया जिसके तहत विदेशी नागरिक जमीन खरीद सकते हैं।
सऊदी अरब के बादशाह सलमान बिन अब्दुलअजीज बहुत जल्द मालदीव का दौरा करने वाले हैं,जिसमें औपचारिक तौर से फाफू अटॉल के बेचने की प्रक्रिया संपन्न होगी। विपक्षी दल एमडीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री अहमद नसीम ने कहा कि मौजूदा सरकार जनभावनाओं का सम्मान नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि मालदीव में जमीन की समस्या के चलते विदेशियों को जमीन बेचने पर पाबंदी थी, जो लोग दोषी पाए जाते थे उन्हें फांसी की सजा दी जाती थी।
मालदीव सरकार ने 2015 में एक संवैधानिक संशोधन के जरिए विदेशियों को जमीन बेचने की मंजूरी दी। मालदीव ही एर ऐसा राष्ट्र है जहां पीएम नरेंद्र मोदी का दौरा नहीं हुआ है। जानकारों का कहना है कि मालदीव के इस कदम पर भारत सरकार का मानती रही है कि ये उनका आंतरिक मामला है लिहाजा दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन अब मालदीव में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले भारत सरकार कोई औपचारिक प्रतिक्रिया दे सकती है।
एमडीपी के मुखिया और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मग नशीद मौजूदा वक्त में लंदन में निर्वासन में रह रहे हैं। वो अगले साल होने वाले चुनाव में हिस्सा लेंगे। मोहम्मद नशीद पहले ही कह चुके हैं कि मालदीव में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो सके ये भारत की नैतिक जिम्मेदारी है। हाल ही में विदेश राज्यमंत्री एम जे अकबर ने माले का दौरा किया था और कहा कि भारत हमेशा से ये चाहता रहा है कि मालदीव में शांति और स्थिरता कायम रहे।
मुख्य विपक्षी दल एमडीपी का कहना है कि सऊदी अरब के दबाव में मालदीव ने इरान से 41 साल पुराना संबंध तोड़ दिया। सऊदी सरकार हर वर्ष 300 विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप देती है जो वहाबी विचार को मानते हैं, मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति यामीन सऊदी अरब से इस्लामिक शिक्षक लाकर स्कूलों को मदरसों में बदलना चाहते हैं।