नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा? जानिए इसका वैज्ञानिक रहस्य

जयपुर. नवरात्र काल में साधना क्यों? आज की युवा पीढ़ी के मन में  सहज ही यह प्रश्न उठ सकता है। जीवन को सहज, शांत, तनाव मुक्त व आनन्दपूर्ण बनाने के लिए, दु:ख से निजात पाने के लिए। दरअसल आज के दु:खों का प्रमुख कारण है अशक्ति। व्यक्ति की जीवन के प्रति आस्थाएं गड़बड़ा गई हैं। 

l_goddess-durga-1490509734अचिन्त्य चिन्तन से उत्पन्न तनाव विस्फोटक होता जा रहा है। सच्ची प्रसन्नता व प्रफुल्लता कहीं-कहीं अपवाद स्वरूप दृष्टिगोचर होती है। सभी को अभाव की शिकायत है। चाहे धन का अभाव हो, चाहे शारीरिक सामर्थ्य का या फिर मानसिक शक्ति व संतुलन का। 

आज व्यक्ति दु:खी है, उद्धिग्न है। प्रत्येक भावनाशील इन भयावह समस्याओं से मुक्ति चाहता है। कैसे मिलेगी मुक्ति? निसंदेह शक्ति के अवलम्बन से।

चिंतन प्रवाह की सकारात्मक तरंगें

नवरात्र काल साधना से शक्तिअर्जन का सुअवसर भी प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऋतु परिवर्तन की यह बेला वस्तुत: साधना के द्वारा शक्ति संचय की है। आत्मिक प्रगति के लिए वैसे तो किसी अवसर विशेष की बाध्यता नहीं होती लेकिन नवरात्र बेला में किए गए उपचार संकल्प बल के सहारे शीघ्र गति पाते तथा साधक का वर्चस्व बढ़ाते हैं। 

चिंतन प्रवाह को सकारात्मक मोड़ देने वाली तरंगें भी इन नौ दिनों में विशेष रूप से उठती हैं। नौ दिनों की इस विशेष अवधि में जब वातावरण में देवी शक्तियों के अनुदान बरसते रहते हैं, संकल्पित साधना की जा सके तो उससे चमत्कारी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

परमचेतना को करें सिंचित

शक्ति के संचय के लिए जरूरी है ‘साधना’। साधना इन्द्रिय संयम की, क्रोध पर नियंत्रण की और चित्त की एकाग्रता की। इन्हें काबू में करना सीख गए तो जीवन की सभी समस्याओं का हल हम खुद ही निकाल लेंगे। हालांकि यह कहने में जितना सहज है करने में उतना ही कठिन, चित्त के जड़ीले संस्कार और लोभ-मोह के धागे हमारी आत्मिक प्रगति की राह में सबसे बड़ी बाधा होते हैं जिन पर विजय साधना के नियमित और निरन्तर अभ्यास से ही पाई जा सकती है। 

आन्तरिक दृढ़ता के साथ किए गए अभ्यास से न केवल भावनात्मक असंतुलन का निदान होगा वरन मन की आंतरिक शक्ति भी बढ़ेगी। इससे संचित शक्ति का संकल्पपूर्ण उपयोग आध्यात्मिक और व्यक्तित्व विकास व आत्म साक्षात्कार का सबल माध्यम भी बनता है। अन्य शुभ संयोग और पर्यावरणीय अनुकूलताओं से परिपूर्ण इस दिव्य साधनाकाल का लाभ उठाएं और तन-मन को  अभिसिंचित करें।                   

 
 

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