नई दिल्ली। क्या आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं? क्या कभी ऐसा हुआ है कि ऑनलाइन शॉपिंग में आपको खराब या क्षतिग्रस्त उत्पाद सप्लाई कर दिया गया हो? आपने कई बार सुना होगा कि ऑनलाइन मोबाइल खरीदने पर उपभोक्ता को डिब्बे में पत्थर का टुकड़ा या साबुन मिला। ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ ऐसी शिकायतें आम हैं। बावजूद अब तक ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत किसी तरह की कार्रवाई का अधिकार ग्राहकों के पास नहीं था और न ही ई-कॉमर्स कंपनियों की अब तक कोई जिम्मेदारी तय थी।
अब नए उपभोक्ता संरक्षण बिल (Consumer Protection Bill 2019) में केंद्र सरकार ने न केवल ई-कॉमर्स कंपनियों की जिम्मेदारी तय की है, बल्कि उन पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी किया है। केंद्र सरकार ने सोमवार (29 जुलाई 2019) को नए उपभोक्ता संरक्षण बिल को पास करा लिया है। इस बिल में भ्रामक उत्पादों का विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटीज की भी जिम्मेदारी तय की गई है। मतलब अब किसी उत्पाद का भ्रामक विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटीज ये कहकर नहीं बच सकेंगे कि उन्हें उसकी गुणवत्ता की जानकारी नहीं थी।
नए बिल पर सरकार का तर्क
संसद में नया उपभोक्ता संरक्षण बिल पेश करते हुए उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा था कि भ्रामक विज्ञापनों के साथ टेलीमार्केटिंग, बहुस्तरीय विपणन, सीधे विक्रय और ई-वाणिज्य ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए नई चुनौतियां पैदा की हैं। ऐसे में उपभोक्ता हितों को नुकसान से बचाने के लिए समुचित और शीघ्र हस्तक्षेप की आवश्यकता है। विधेयक का मकसद उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार व्यवहारों से होने वाले नुकसान से बचाना और व्यवस्था को सरल बनाना है।
आसानी से मिल सकेगा इंसाफ
नए बिल में उपभोक्ता विवाद के मामलों का सरल तरीके से जल्द निपटारा करने पर जोर दिया गया है। बिल में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति उपभोक्ता संबंधी मामलों की शिकायत कर सकता है। 21 दिन के भीतर उसकी शिकायत स्वतः दर्ज कर ली जाएगी। उपभोक्ता संबंधी मामलों के जल्द निपटारे के लिए केंद्र सरकार ने उपभोक्ता मंचों से जुड़े रिक्त पदों को जल्द भरने के लिए राज्य सरकारों से आग्रह किया है। नए विधेयक में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की स्थापना का भी प्रस्ताव है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में होगा। साथ ही उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए आयोग गठित करने के साथ जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर फोरम गठित करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
इसलिए अधिनियम में हुआ परिवर्तन
नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 को पेश करते हुए सरकार ने तर्क रखा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ग्राहक हितों के बेहतर संरक्षण और उपभोक्ता विवादों के समाधान के लिए, उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना करने के लिए बनाया गया था। ये अधिनियम 1986 में बना था। इसके बाद से माल और सेवाओं के लिए बाजार में काफी परिवर्तन आ चुका है। बाजार में अंतरराष्ट्रीय प्लेयर्स के सामने आने से वैश्विक बाजार बढ़ा है और ई-कॉमर्स के व्यापार में तेजी आई है।
2018 में भी लोकसभा में पास हुआ था बिल
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 को 16वीं लोकसभा में भी पांच दिसंबर 2018 को पेश किया गया था। लोकसभा में ये बिल 20 दिसंबर 2018 को पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में बिल लटक गया था। 16वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद मोदी सरकार-2 ने एक बार फिर संशोधित विधेयक को सदन में पेश किया। इस बार सरकार संशोधित विधेयक को दोनों सदनों में पास कराने में सफल रही है।
नए उपभोक्ता संरक्षण बिल की प्रमुख बातें
1. नए बिल में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ( CCPA) के गठन का प्रस्ताव है। प्राधिकरण, के पास अधिकार होगा कि वह उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और अनैतिक व्यापारिक गतिविधियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप कर सकेगी।
2. किसी भी कंपनी या विक्रेता को 30 दिन में उत्पाद वापस लेना और पैसा लौटाना अनिवार्य होगा।
3. उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन के तर्ज पर अत्यधिक प्रभावी बनाने का प्रस्ताव है।
4. प्राधिकरण उत्पाद वापस लेने या रिफंड के आदेश के अलावा कंपनी के खिलाफ क्लास ऐक्शन ले सकेगी। क्लास ऐक्शन का मतलब है कि मैन्युफैक्चर्स या सर्विस प्रोवाइडर्स की जिम्मेदारी अब प्रत्येक ग्राहकों के प्रति होगी। क्लास ऐक्शन के तहत सभी प्रभावित उपभोक्ता लाभार्थी होंगे।
5. प्रोडक्ट के उत्पादन, निर्माण, डिजाइन, फॉर्म्युला, असेंबलिंग, टेस्टिंग, सर्विस, इंस्ट्रक्शन, मार्केटिंग, पैकेजिंग, लेबलिंग आदि में खामी की वजह से अगर ग्राहक की मौत होती है या वह घायल होता है या किसी अन्य तरह का नुकसान होता है तो मैन्युफैक्चरर, प्रोड्यूशर और विक्रेता को भी जिम्मेदार माना जाएगा।
6. नए बिल में प्रावधान किया गया है कि अगर जिला व राज्य उपभोक्ता फोरम, ग्राहक के हित में फैसला सुनाती है तो संबंधित कंपनी राष्ट्रीय फोरम में अपील नहीं कर सकेगी।
7. नए कानून में उपभोक्ता को ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने का भी अधिकार दिया गया है। ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने के बाद उपभोक्ता अपने नजदीकी उपभोक्ता अदालत जा सकता है। उपभोक्ता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी सुनवाई में शामिल हो सकता है।
8. अब तक ग्राहक, विक्रेता के खिलाफ उसी स्थान पर लीगल ऐक्शन ले सकता था, जहां लेनदेन हुआ हो। ऑनलाइन शॉपिंग में ऐसा संभव नहीं था। इसलिए ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा नजदीकी उपभोक्ता अदालत में सुनवाई का अधिकार दिया गया है। सरकार का मानना है कि नया कानून मामलों के जल्द निपटारे के लिए महत्वपूर्ण होगा।
9. पहली बार ई-कॉमर्स कंपनियों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है। ई-कॉमर्स कंपनियों को उपभोक्ता का डाटा लेने के लिए ग्राहक की सहमति लेना अनिवार्य होगा। साथ ही ग्राहक को ये भी बताना होगा कि उसके डाटा का इस्तेमाल किस तरह और कहां किया जाएगा।
10. ऑनलाइन शॉपिंग कराने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को अब अपने व्यापार का ब्यौरा (बिजनेस डीटेल्स) और सेलर अग्रीमेंट का खुलासा करना अनिवार्य होगा।
11. बिल में मैन्युफैक्चरर के अलावा उत्पाद का प्रचार करने वाले सेलिब्रिटीज की जिम्मेदारी तय की गई है। भ्रामक या ग्राहकों को नुकसान पहुंचाने वाले विज्ञापन करने पर मैन्युफैक्चरर को दो साल की जेल और 10 लाख रुपये जुर्माना हो सकता है।
12. गंभीर लापरवाही के मामलों में मैन्युफैक्चरर को छह माह से आजीवन कारावास की सजा और एक लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दोनों सूरत में सेलिब्रिटीज से भी निर्धारित जुर्माना तो वसूल किया जा सकता है, लेकिन जेल नहीं होगी।
13. बिल में पहली बार कंपोजिट सप्लाई या बंडल सर्विसेज का भी प्रावधान किया गया है। इसका मतलब है कि अगर कोई ऑनलाइन प्लेटफार्म यात्रा टिकट के साथ होटल में ठहरने और स्थानीय ट्रैवल की सुविधा प्रदान कर रहा है तो उसे सभी सेवाओं के लिए जिम्मेदारी ठहराया जा सकता है। वह दूसरे पर दोष मढ़कर बच नहीं सकेगा।
14. झूठी शिकायतों को रोकने के लिए बिल में 10 हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
15. उपभोक्ता आयोग से उपभोक्ता मध्यस्थता सेल को भी जोड़ा जाएगा, ताकि मामले का त्वरित हल निकाला सके। इससे उपभोक्ता आयोग में लंबित केसों का बोझ भी कम होगा।
16. उपभोक्ताओं की शिकायत पर फैसला लेने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का गठन होगा। जिला और राज्य आयोग के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील की सुनवाई हो सकती है। राष्ट्रीय आयोग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होगी।
17. नए बिल में ऐसे अनुबंधों (Contracts) को अनुचित माना गया है, जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रभावित करते हैं। इसे अनुचित और व्यापार का प्रतबंधित तरीका माना जाएगा।
18. अगर कोई व्यक्ति या कंपनी जिला, राज्य या राष्ट्रीय आयोगों के आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसे तीन वर्ष की जेल या 25 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
19. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के आदेश का पालन नहीं करने पर छह माह के कारावास की सजा या 20 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
20. जिला उपभोक्ता फोरम एक करोड़ रुपये तक, राज्य उपभोक्ता फोरम एक करोड़ रुपये से 10 करोड़ रुपये तक और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का जुर्माना कर सकती है।