एक देश-एक बिजली दर की मांग बिहार यूं ही नहीं कर रहा है। बिहार आज जिस दर पर बिजली खरीद रहा है, वह बिजली खरीद की राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। हद तो यह कि बिहार की तुलना में पड़ोसी राज्यों को भी सस्ती बिजली मिल रही है। पड़ोसी राज्यों में सबसे सस्ती बिजली ओडिशा को मिल रही है जो बिहार से लगभग आधे कीमत पर ही बिजली ले रहा है। अधिक दाम पर बिजली लेने के कारण बिहार को हर साल हजारों करोड़ अधिक खर्च करने पड़ रहे हैं। विकास के कई पैमाने पर पिछड़े बिहार के लिए यह दोहरी मार ही कही जाएगी कि जो पैसे वह विकास पर खर्च करता, वह बिजली खरीद में करना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार पांच भागों में बांट कर राज्यों को बिजली देती है। ये पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण के अलावा उत्तर-पूर्वी जोन हैं। पूर्वी जोन में बिहार के अलावा झारखंड,ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम आता है। साल 2018-19 में खरीदी गई बिजली की दर का ऑडिट रिपोर्ट हाल ही में आया है। इसके अनुसार देश में बिजली खरीद का औसत मात्र 3.60 रुपए प्रति यूनिट है। इसमें पूर्वी राज्यों में सबसे कम दर पर ओडिशा को बिजली मिल रही है। जबकि सबसे अधिक दर पर बिहार को ही बिजली मिल रही है। राष्ट्रीय औसत की तुलना में ओडिशा को 89 पैसे प्रति यूनिट सस्ती बिजली मिल रही है। जबकि राष्ट्रीय औसत से भी बिहार 52 पैसे अधिक प्रति यूनिट बिजली खरीद में खर्च कर रहा है। ओडिशा से तुलना करें तो बिहार 1.35 रुपए प्रति यूनिट अधिक दर पर खरीद कर लोगों को बिजली दे रहा है। यह सीधा-सीधा राज्य कोष पर केंद्र की असमान नीति के कारण बोझ पड़ रहा है।
देश के विकसित राज्यों महाराष्ट्र, तामिलनाडू, गुजरात आदि की बात करें तो उन राज्यों में दशकों पहले बिजली घर लगे। जबकि बिहार में बिजली घर इस शताब्दी में लगे। अब भी कुछ बिजली घर आने हैं। पहले के बने बिजली घरों की अधिकतम लागत 80-85 लाख प्रति मेगावाट का आया। लेकिन अभी मशीन, जमीन की अधिक दर के कारण बिजली घर बनाने की लागत सात-आठ करोड़ प्रति मेगावाट तक पहुंच गई है। चूंकि दर बिजली घरों के निर्माण के साथ ही बिजली घरों के रखरखाव का खर्च के आधार पर तय होता है, इसलिए नई इकाईयों की बिजली दर अधिक हो जा रही है।
माल भाड़ा समानीकरण की नीति के कारण अविभाजित बिहार (अब झारखंड) से कोयला देश के सभी राज्यों में एक दर पर गए। इस कारण उन राज्यों में अधिक उद्योग लगे, जहां समुद्री सीमा थी। कोयला होने के बावजूद लैंडलॉक्ड राज्य बिहार में उद्योग कम लगे। सरकार ने जब कोयला का दर एक समान कर दिया तो फिर बिजली दर क्यों नहीं।