माघ मास का प्रमुख स्नान पर्व मौनी अमावस्या दुर्लभ संयोग लेकर आया है। सदियों बाद इसका पुण्य योग 24 घंटे से अधिक तक रहेगा। तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी (संगम) में डुबकी लगाने से मानव के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाएंगे। मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर देव, दानव, मानव, किन्नर, पशु, पक्षी सभी एक साथ संगम में डुबकी लगाने आते हैं। इस दिन स्नान-दान करने वाले इंसान का जन्म जन्मांतर का पाप धुल जाता है।
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि 27 जनवरी की भोर 4.48 बजे से अमावस्या तिथि लग जाएगी, जो 28 जनवरी की सुबह 5.32 बजे तक रहेगी। शुक्रवार को मकर राशि में सूर्य व चंद्रमा का संचरण होगा, देवगुरु बृहस्पति तुला राशि में रहेंगे। वहीं उत्तराषाढ़ नक्षत्र, व्रज योग का अद्भुत संयोग बन रहा है। इसमें मौन रहकर स्नान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। स्नान के बाद तिल, कंबल, ऊनी वस्त्र, स्वर्ण, गोदान व फल का दान करना पुण्यकारी रहेगा।
पितरों को मिलेगी तृप्ति
ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय बताते हैं कि मौनी अमावस्या पर स्नान के साथ पितरों के श्रद्धा व तर्पण का भी विधान है। संगम के अलावा गंगा, यमुना, सरोवर या घर में स्नान करके पितरों को तर्पण, श्राद्ध व जलांजलि दी जाती है तो वह सीधे पितरों को मिलती है। स्नान के बाद पितरों का नाम लेकर तीन, पांच या सात बार जलांजलि देनी चाहिए। आचार्य राय बताते हैं कि संगम में स्नान करने वाले श्रद्धालु को एक, तीन, पांच, सात व नौ डुबकी लगानी चाहिए। मन ही मन ओम गणपतये नम:, ओम सूर्याय नम: व ओम पितरेभ्यो नम: का जाप करना चाहिए। धर्म सिंधु के अनुसार अगर घर का कोई व्यक्ति शारीरिक अक्षमता के कारण स्नान करने नहीं आया है तो उनका नाम लेकर दूसरा सदस्य डुबकी लगा सकता है। इससे उस अक्षम सदस्य को पुण्य की प्राप्ति होगी।
क्यों है मौनी अमावस्या?
परिवर्तन मानव विकास संस्थान के निदेशक ज्योतिषाचार्य बिपिन पांडेय बताते हैं कि माघ मास की प्रथम अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सूर्य तथा चंद्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं। इसी दिन ब्रह्माजी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरूपा को प्रकट कर सृष्टि की शुरुआत की। वे कहते हैं कि मनुष्य के अंदर तीन मैल कर्म, भाव तथा अज्ञानता का होता है। जो संगम स्नान से धुल जाता है।