लखनऊ- केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान ने 10 साल के शोध के बाद बड़ी उपलब्ध हासिल की है। हार्टअटैक और ब्रेन स्ट्रोक के रोगियों के लिए संस्थान ने नई जीवनरक्षक दवा ईजाद की है। दावा है कि यह दवा दिल के दौरे और स्ट्रोक के उपचार के लिए मौजूदा दवाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावी व सुरक्षित होगी। सीडीआरआइ एंटीप्लेटलेट ड्रग एस-007-867 से रक्तस्त्राव का जोखिम भी बेहद कम होगा। इसके परीक्षण के लिए ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से 30 जनवरी को मंजूरी मिल चुकी है। संस्थान रक्त में थक्के बनने से रोकने वाली इस दवा का इंसानों पर क्लीनिकल परीक्षण जल्द शुरू करेगा।
डॉ. तपस कुमार कुंडू ने बताया कि ऐसे लोग जिनमें हार्टअटैक, ब्रेन स्ट्रोक, ट्रांजियंट इश्चमिक अटैक या कोई अन्य हार्ट डिजीज हो या होने की संभावना हो, उसे रोकने या उपचार के लिए नई दवा बेहद कारगर है। संस्थान के वैज्ञानिक 10 साल से अनुसंधान में जुटे थे। अब जाकर सफलता मिली है। खास बात यह है कि ड्रग एस-007-867 एक नए मेकेनिज्म पर आधारित है, जो रक्तवाहिनियों में थक्के रोकने का काम करती है। इससे रक्त वाहिनियों में ब्लीडिंग का जोखिम कम हो जाता है।
लंबे वक्त बाद विकसित हुई दवा
वैज्ञानिक डॉ. विवेक भोंसले बताते हैं कि देश में लंबे अर्से से कोई नई दवा विकसित नहीं हुई थी। ऐसे में न केवल संस्थान, बल्कि देश के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कार्डियो वेस्कुलर डिजीज (सीवीडी) मौत की सबसे बड़ी वजह है। इसमें रक्तवाहिनियों में ब्लॉकेज हो जाती है, जिससे हार्ट या मस्तिष्क में खून का प्रवाह रुक जाता है। ऐसे में पक्षाघात से लेकर मौत तक हो सकती है। एंटीप्लेटलेट दवा थक्का बनना रोककर बीमारी व मृत्यु दर को कम करती है।
वर्तमान की दवाएं ज्यादा कारगर नहीं
डॉ. भोंसले के मुताबिक, वर्तमान में इसके लिए सबसे प्रचलित एस्पिरिन और क्लोपिडोग्रेल है, लेकिन एस्पिरिन जहां कुछ लोगों पर काम नहीं करती, वहीं इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो जाती है। दूसरी दवा क्लोपिडोग्रेल से कुछ लोगों में ब्लीडिंग होने का जोखिम रहता है, जो हीमेरेजिक स्ट्रोक का कारण बनता है।
यह है खासियत
दिल और दिमाग के मरीजों को लंबे समय तक यह दवा लेनी पड़ती है। इसलिए ऐसी दवा की जरूरत थी जो प्रभावी होने के साथ सुरक्षित भी हो। यह दवा बिल्कुल नई मेकेनिज्म से तैयार की गई है जो कोलेजन उत्प्रेरित प्लेटलेट्स को एकत्र होने से रोकती है। तभी काम करना शुरू करती है, जब रक्तवाहिका में चोट लगी हो। ऐसे में यह शरीर की सामान्य प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करती। प्रयोगशाला में जंतुओं पर यह पूरी तरह से सुरक्षित पाई गई। यही वजह है कि मानव पर परीक्षण के लिए डीजीसीआइ ने हरी झंडी दे दी है।
शोध टीम
डॉ.दिनेश दीक्षित, डॉ.मधु दीक्षित, डॉ.डब्ल्यू हक, डॉ.संजय बत्रा, डॉ.एके द्विवेदी, डॉ.अमित मिश्रा, डॉ. मनोज बर्थवाल, डॉ. रबी भट्ट, डॉ. शरद शर्मा, डॉ. एसके रथ और डॉ. विवेक भोंसले।