थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख का इस्तेमाल राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के लिए किया जाता रहा है। केंद्र सरकार ने अब इस राख से ईंटें, ब्लॉक व टाइल्स बनाने का फैसला किया है, ताकि इनसे राष्ट्रीय राजमार्गों के फुटपाथों का निर्माण किया जा सके। इसके अलावा राख का इस्तेमाल चिनाई संरचना, फर्श आदि बनाने में भी किया जा सकेगा।
सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने 22 जुलाई को सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों, एनएचएआई, एनएचएआईडीसीएल, पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियरों, बीआरओ को नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें पर्यावरण मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा गया है कि देशभर में 40 से अधिक थर्मल पावर प्लांट से हर साल करोड़ों टन राख (फ्लाई एश) निकल रही है। यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या है बल्कि आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि पावर प्लांट प्रशासन 100 फीसदी राख का निपटारा नहीं कर पार रहे हैं। इस कारण मिट्टी, भूजल, नदी, हवा में राख के घुलने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। वहीं दूसरी ओर लोग दमा, टीबी, फेफेडों के संक्रमण व कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। नए दिशा-निर्देश में सड़क निर्माण कंपनियों के लिए पावर प्लांट से निकलने वाली राख से ईंटें, ब्लॉक व टाइल्स बनाना अनिवार्य होगा। इसका उपयोग राजमार्गों के फुटपाथ बनाने में किया जाएगा। कंपनियों को 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित पावर प्लांट से राख को लाना होगा। इसकी ढुलाई में कंपनी व पावर प्लांट को आधा-आधा खर्च वहन करना होगा।
जानकारों का कहना है कि थर्मल पावर प्लांट से निकले वाली राख में खतरनाक-जहरीले आर्सेनिक, सिलिका, एल्युमिनियम, पारा, आयरन आदि तत्व होते हैं। यह जमीन, जंगल व मानव के लिए घातक है, वहीं नदी-तालाब व भूजल प्रदूषित होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल बिजली उत्पादन का करीब 63 फीसदी बिजली की जरुरत थर्मल पावर प्लांट से पूरी होती है। 2016-17 में देशभर के थर्मल पावर प्लांट से बिजली उत्पादन के कारण 169.10 मिलियन टन राख पैदा हुई। 2018-19 यह आंकड़ा बढ़कर 217.04 मिलियन टन हो गया।