अफगानिस्तान में हिंसा मचा रहे तालिबानी को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि वो एक सामान्य नागरिक हैं। दरअसल जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से पूछा गया कि हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि करीब 10,000 पाकिस्तानी लड़ाकू बॉर्डर पार कर तालिबान की मदद करने गए हैं? तब इसपर इमरान खान ने कहा कि यह बिल्कुल गलत बात है, वो हमें इस बात का सबूत क्यों नहीं देते हैं?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान में तीन मिलियन अफगानी रिफ्यूजी रहते हैं जिसमें पश्तूनी लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि तालिबानी मिलिट्री आउटफिट्स नहीं हैं, वो सामान्य नागरिक हैं। अगर इन कैंपों में कुछ सामान्य नागरिक रहते हैं तो कैसे पाकिस्तान इन लोगों को खोज कर उन्हें मार सकता है? आपको बता दें कि ‘PBS NewsHour’ के साथ एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने यह बात कही है। इस इंटरव्यू को मंगलवार को प्रसारित किया गया है।
इस साक्षात्कार में पाकिस्तानी पीएम ने यह भी कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में चीजें अस्त-व्यस्त कर दी हैं। इमरान खान ने कहा कि उसने (अमेरिका ने) ”वाकई वहां (अफगानिस्तान में) चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है। खान ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का एकमात्र बेहतर समाधान राजनीतिक समझौता ही है जो ‘समावेशी हो और इसमें ”तालिबान समेत सभी गुट शामिल हो। डॉन अखबार के अनुसार खान ने अमेरिकी खबरिया कार्यक्रम पीबीएस आवर में जूडी वुडरफ के साथ साक्षात्कार के दौरान कहा,”मैं समझता हूं कि अमेरिका ने वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है।’तालिबान के साथ हुए करार के तहत अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देश आतंकवादियों के इस वादे के बदले अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गये कि वे चरमपंथी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोकेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से बुला लिये जाएंगे।
इमरान खान ने अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना की क्योंकि कभी वैसा कुछ ऐसा (संभव) था ही नहीं। उन्होंने कहा, ‘और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान नहीं (संभव) है, क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें — मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया। मुझे तालिबान खान कहा गया।’
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि जब तक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तब तक दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गयी। प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरका को बहुत पहले ही राजनीक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे। उन्होंने कहा कि लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10000 कर दी तब , जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गये। इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है।जब साक्षात्कारकर्ता ने पूछा किया क्या वह सोचते हैं कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा ”जो समावेशी हो। उन्होंने कहा, ‘निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा।’ अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा कि पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है।