लखनऊ । श्रद्धा साबुरी का ज्ञान देने वाले लीला शिरोमणि। चमत्कारी गुरु और भक्तों की आस्था का केंद्र शिरडी के साईं। साईं बाबा कोई मिथक शख्सियत नहीं थे। वो सशरीर इस धरती पर आए थे। लोगों के बीच रहे और लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अपना सारा जीवन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उनके रहते हुए उन्होंने जो शिक्षा, ज्ञान अपने भक्तों को दिया था उसे उनके भक्त आज भी सजोए हुए हैं। आज सिर्फ अपने देश में ही नहीं दुनिया के कोने-कोने में साईं मंदिर हैं, जिनमें साईं बाबा की पूजा की जाती है। इनहीं मंदिरों में से है शिरडी का साईं मंदिर।
लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया भर में मशहूर शिरडी का यह साईं मंदिर द्वारका माई का वह स्थान है जहां साईं बाबा भोजन किया करते थे। साईं बाबा यहीं पर धूनी रमाते और उसी धूनी का प्रसाद लोगों को बांटते थे। लोगों का कहना है कि साईं की दी हुई उसी धूनी से लोगों के सभी दुख दर्द दूर होते थे। वहीं दूसरी तरफ जहां साईं बाबा का समाधी मंदिर है ये दोनों जगह आसपास हैं। ये दोनों ही स्थान शिरडी के साईं मंदिर परिसर की दक्षिण दिशा में है। तभी तो शिरडी के मंदिर को साईं बाबा का समाधी मंदिर भी कहा जाता है।
आपको बता दें कि इस जगह की जमीन ऊंचाई पर है और परिसर के बाहर दक्षिण दिशा में सड़क है। सड़क के दूसरी ओर दुकानें हैं जहां प्रसाद, सांईबाबा के फोटो और साहित्य मिलते है। परिसर की चारों दिशाओं में द्वार है, लेकिन परिसर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में है जहां से भक्त कई बड़े कमरों से गुजरते हुए समाधी मंदिर तक जाते हैं।
धार्मिक आस्था है कि साईं का विशेष महत्व है कहते है कि साईं के दरबार में जो भी जाता है वह खाली हाथ नही लौटता है। दर्शन के पहले और बाद यही विश्वास और आस्था हर भक्त के जीवन से निराशा व सारे दुखों को दूर रख उसे मन-मस्तिष्क से इतना बलवान रखता है, कि उसे हर कठिन वक्त में भी सारी परेशानियों से बाहर निकलने की राह मिल जाती है। यहीं नहीं, त्याग व तपोमूर्ति साईं बाबा के संदेशों का स्मरण मात्र भी मनोबल को ऊंचा करते हैं। इनमें सबका मालिक एक, श्रद्धा व सबूरी तो धर्म भेद से परे इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म सिद्ध कर हर हृदय को सुख-सुकून ही देने वाले हैं।