वाराणसी, जेएनएन। सिनेमा संस्कृति के विकास में सतत् प्रयासरत जागरण फिल्म फेस्टिवल ने दूसरे दिन शनिवार को अतीत और वर्तमान की कड़ियों को जोड़ा। बड़े-बुजुर्गो को पुराने दिनों की याद ताजा कराई तो नई पीढ़ी को उसके जमाने का दर्शन कराया। देश के सबसे बड़े घूमंतू फेस्टिवल के दसवें संस्करण ने फिल्मों की विभिन्नता और संदेशपरकता को सहेज कर ले आने का अहसास कराया तो इनमें दर्शकों को उनका ही अक्स उभरता नजर आया। अनिल कपूर के फिल्मी सफरनामा (रेट्रो) के तहत बापू निर्देशित वो सात दिन से दूसरे दिन का श्रीगणेश हुआ। डा. आनंद के किरदार में अनिल कपूर ने अपनी प्रमुख भूमिका वाली पहली फिल्म में सशक्त अभिनय से मुग्ध तो किया ही, प्रेम त्रिकोण पर आधारित कहानी ने भी हर एक को बांधे रखा।
राही अनिल बर्वे की फिल्म तुम्बाड ने महाराष्ट्र के एक गांव से चलकर तीन अध्याय में लालच का फल आज नहीं तो कल की कहावत को साकार किया। रहस्य और रोमांच सहेजे फिल्म संदेश देने में सफल रही। इसका अंदाजा कभी हाल में फैले सन्नाटे तो रह-रह कर गूंज उठती तालियों ने कराया। सिंह बंधु देवांशु-सत्यांशु निर्देशित फिल्म ‘चिंटू का बर्थ डे’ ने युद्ध ग्रस्त इराक में फंसे भारतीय परिवार की दास्तान को सामने रखा। महज दो कमरों में शूट की गई फिल्म ने झंझावातों से जूझ रहे ईराक में युद्ध की विभीषिका का सहज अंदाजा कराया और दर्शकों को बांधे रखा। सादीम खान निर्देशित फिल्म इकराम ने आतंकवाद का दर्द और जन्म दिन मनाने निकले अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र को बम ब्लास्ट मामले में फंस जाने और रिहाई तक के दर्द को दिखाया।
प्रज्ञेश सिंह निर्देशित शिनाख्त ने मुस्लिम समाज में खतना की समस्या से रूबरू कराया। इस तरह आम जिंदगी से जुड़ते हुए फेस्टिवल का रंग दर्शकों पर छाता रहा और मुरीद बनाता रहा। खुद मुरीद हुए तो दूसरे दोस्तों को भेजे सेल्फी फेस्टिवल को संवाद और मास्टर क्लास से लेकर फिल्मों तक को दर्शकों का प्यार मिला। इसमें तमाम लोग ऐसे रहे जिन लोगों ने फेस्ट के बारे में खुद दूसरे जिलों में रह रहे शुभचिंतकों व दोस्तों मित्रों को आमंत्रित किया। सेल्फी ली और प्रमाण के तौर पर इसे उन्हें भेज भी दिया। हर ब्रेक पर युवा दर्शकों के दस्ते हाल से लेकर बाहर तक फिल्म सीन या पोस्टरों के साथ सेलफोन कैमरे से फोटो लेते रहे।