इस दृश्य में नायिका को गोली लगी है. वह नायक के बाहों में दम तोड़ रही है. नायक उसे सम्बल दे रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद नायिका उसकी बाहों में दम तोड़ देती है. नायिका अपनी सांस रोके पड़ी है. नायक उसका हाथ अपने हाथ में लिए रोता है.
इस दृश्य को यहीं खत्म हो जाना था मगर यह दृश्य इतना जीवंत बन पड़ा कि निर्देशक कट कहना भूल गया. नायिका कुछ देर तो निर्जीव पड़ी रही मगर जब सांस रोकना असह्य हो गया इशारा किया. तब निर्देशन की तंद्रा टूटी और उन्होंने कट के साथ शॉट ओके कर दिया.
दृश्य को जीवंत करने वाली नायिका वैजयंती माला थीं और फिल्म थी गंगा जमुना.
वैजयंती माला दरअसल दक्षिण की उन पहली अदाकाराओं में से थी जिन्होंने दक्षिण भारतीय नायिकाओं के कदम मुंबई में मजबूत किए.
1933 में अयंगर परिवार में जन्मी वैजयंती माला मूल रूप से नर्तकी थीं. कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में क्लासिकल नृत्य का आगाज वैजंतीमाला से ही हुआ था. उनकी पहली हिंदी फिल्म बहार थी मगर उन्हें लोकप्रियता फिल्म नागिन से मिली. नागिन फिल्म की नायिका के रूप में एक नर्तकी की ही जरूरत थी जिसे वैजयंती माला ने बखूबी पूरा किया.
बाद के सालों में वैजयंती फिल्में तो करती रहीं मगर उन्हें भूमिकाएं नर्तकियों वाले ही मिल रहे थे. उन्हें अपनी अदाकारी दिखाने का मौका नहीं मिल रहा था. इस बीच विमल रॉय, देवदास की चंद्रमुखी की भूमिका लिए वैजयंती के पास आए तो वैजयंती ने फौरन हां कर दी. फिल्म में वैजयंती की अदाकारी की जमकर तारीफ हुई. इनका एक संवाद ‘और मत पियो देवदास’ काफी मकबूल हुआ. फिल्म के लिए वैजयंती माला को सर्वश्रेष्ठ सहनायिका के रूप में नामित किया गया. बाद में उन्होंने यह अवार्ड लेने से यह कहकर इनकार कर दिया कि वह फिल्म की सहनायिका नहीं बल्कि दूसरी नायिका हैं.
पर्दे पर वैजयंती माला की जोड़ी कई नायकों के साथ जमी. उन्होंने दिलीप कुमार, देवानंद, राजेंद्र कुमार के साथ कई फिल्में की. दिलीप कुमार के साथ लगातार फिल्में करने के कारण उनके बीच प्रेम संबंध के चर्चे भी हुए. इन बातों से परेशान होकर वैजयंती माला के पिता ने दिलीप कुमार से बात की. दिलीप कुमार ने उन्हें विश्वास दिलाया कि ऐसा कुछ भी नहीं है और फिल्म नगरी में ऐसी बातें आम हैं.
वैजयंती माला स्वयं भी हिंदी फिल्मों में निभाए गए अपने किरदारों में फिल्म गंगा जमुना के किरदार धन्नो को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं. भाषाई आधार पर यह भूमिका वैजयंती माला के लिए कठिन थी क्योंकि उन्हें भोजपुरी उच्चारण करना था. फिल्म की शूटिंग देख रहे महान निर्देशक के. आसिफ को भी इस बात का संशय था. मगर जब रिलीज हुई तो उन्होंने माला के उच्चारण को देखकर कहा इस लड़की ने दिलीप कुमार को पीछे छोड़ दिया है.
इन्हीं दिनों में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान डल झील में काफी देर तक रह जाने की कारण वैजयंती माला को निमोनिया की शिकायत हुई. राज कपूर के फैमिली डॉक्टर चमन बाली ने उनका इलाज किया. इन्हीं दिनों उनके प्रेम संबंध प्रगाढ़ हुए और दोनों ने शादी कर ली.
वैजयंती माला एक वक्त में सबसे अधिक पारिश्रमिक पाने वाली अदाकारा थीं. अनौपचारिक रूप से उन्हें पहली महिला सुपरस्टार भी कहा जाता था. मगर वह इस बात को लेकर बिल्कुल ही स्पष्ट थीं कि उन्हें अपने परिवार को भी समय देना है.
राजेंद्र कुमार के साथ 1970 में रिलीज हुई गंवार उनकी अंतिम रही. इसके साथ ही वैजयंती माला ने फिल्मों को अलविदा कह दिया. राजेंद्र कुमार के साथ उनकी जोड़ी सबसे ज्यादा पसंद की जाती थी.
वैजयंती माला बाद के दिनों में राजनीति में भी दाखिल हुईं. वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफी करीबी मानी जाती थीं. मगर कुछ दिनों तक राजनीति में सक्रिय रहने के बाद उन्होंने राजनीति भी छोड़ दी. वैजयंती माला कहती हैं कि उनका पहला प्रेम भरत नाट्यम ही है और उसी में रम गईं.
वर्तमान में वैजयंती माला अपने पति चमन वाली की मृत्यु के बाद अपने बेटे सुचिंद्र बाली के साथ चेन्नई में रहती हैं. 13 अगस्त को उनके जन्मदिन पर फ़र्स्टपोस्ट उनके दीर्घायु होने की कामना करता है.