रांची की एक विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को बिहार सरकार के खजाने से 21 साल पहले फर्जीवाड़ा कर पैसे निकालने के जुर्म में साढ़े तीन साल की कैद और पांच लाख रूपये जुर्माने की सज़ा सुनाई है। यह फैसला लालू यादव और 15 अन्य लोगों को चारा घोटाले में दोषी करार देने के करीब दो हफ्ते बाद आया है। विशेष जज शिवपाल सिंह इस केस में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और छह अन्य को बरी कर चुके है।
इसके साथ ही, अदालत ने बाकी दोषियों फूलचंद, महेश प्रसाद, बेक जूलियस, सुनील कुमार, सुधीर कुमार और राजा राम को भी साढ़े तीन साल की सज़ा और पांच लाख रूपये का जुर्माना लगाया गया। अब लालू यादव की तरफ से जमानत के लिए सोमवार को फैसले की कॉपी लेकर हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।
लालू का राजनीतिक सफर एक दिलचस्प किस्सा है
एक वक्त था जब लालू यादव कद्दावर छात्र नेता और जयप्रकाश नारायण के शागिर्द थे. एक लोकप्रिय नेता से बेहद भ्रष्ट राजनेता के तौर पर लालू यादव का राजनीतिक सफर एक सियासत का दिलचस्प किस्सा है.
लालू यादव उस वक्त कद्दावर नेता के तौर पर उभरे, जब देश दो बेहद सांप्रदायिक घटनाओं से जूझ रहा था. 1990 के दशक में देश में हड़कंप मचाने वाला पहला मामला था शाहबानो का. वहीं दूसरा मुद्दा था राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद. लालू ने खुद को मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी के तौर पर पेश किया. मुस्लिम मुद्दों पर उनका रुख सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाला ही था. राजीव गांधी ने शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संविधान तक में बदलाव कर डाला. इस तरह मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल रोक दिया.
उस दौर का एक किस्सा बहुत मशहूर है. राजीव गांधी बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलने गए थे. आडवाणी के परिवार में किसी की मौत हो गई थी. राजीव गांधी उसी पर शोक जताने के लिए आडवाणी से मिलने गए थे. दोनों के बीच बातचीत में शाहबानो का मामला भी उठा. आडवाणी ने राजीव गांधी को सलाह दी कि वो शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए संविधान संशोधन जैसा कदम न उठाएं. आडवाणी ने कहा कि हालांकि मेरी सलाह मेरी पार्टी लाइन के खिलाफ है. मगर ये बात देशहित की है.
इतिहास गवाह है कि राजीव गांधी ने आडवाणी की सलाह नहीं मानी और संविधान संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. राजीव के इस फैसले ने आरएसएस-वीएचपी को एक बड़ा मुद्दा दे दिया. हिंदूवादी संगठनों ने इस फैसले को बुनियाद बनाकर हिंदुओं को एकजुट करने की मुहिम छेड़ी, जो बाद में बीजेपी की बढ़ी सियासी ताकत के तौर पर सामने आई. अयोध्या विवाद को मुद्दा बनाकर आडवाणी पूरे देश की रथयात्रा पर निकले. ये लालू यादव ही थे जिन्होंने अयोध्या के रास्ते पर जा रहे आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार करके उनकी यात्रा रोकी थी.
तरक्कीपसंद वकीलों ने दिया लालू को हौसला
आडवाणी की नाटकीय गिरफ्तारी ने लालू यादव को युवा क्षेत्रीय नेता से मजबूत राष्ट्रीय नेता बना दिया था. वो सेक्यूलरिज्म के सबसे बड़े अलंबरदार बन गए. लेकिन, लालू की असलियत उनके पहले कार्यकाल में ही सामने आ गई थी. वो एक लालची, जातिवादी और भाई-भतीजावाद करने वाले नेता के असली रूप में सामने आए. उनके राज में बिहार में प्रशासन और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से बैठ गई. लालू ने बिहार को कुप्रशासन की मिसाल बना दिया. वो समाज को बुनियादी सुरक्षा और अधिकार देने में भी नाकाम रहे थे.
फिर भी खुद को तरक्कीपसंद कहने वाले कुछ लोग लालू को सामाजिक न्याय और सेक्यूलरिज्म के मसीहा के तौर पर पेश करते रहे. उनके भ्रष्टाचार और जुर्म को छुपाने के लिए लालू की इमेज को ऐसे ही मुल्लमे चढ़ाकर पेश किया जाता रहा.
जब चारा घोटाले में लालू यादव का नाम आया, तो किसी को अचरज नहीं हुआ. पहले मुख्यमंत्री के तौर पर, और फिर पत्नी राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाकर लालू यादव बिहार के राजा के तौर पर बर्ताव करते रहे. अपने भ्रष्टाचार और अपराध छुपाने के लिए उन्होंने सेक्यूलरिज्म और सामाजिक न्याय को मुखौटा बना लिया. तरक्कीपसंद कहे जाने वाले लोगों की एक जमात लालू यादव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती रही.
लालू जितना मोदी को गाली देते, खुद को सेक्यूलर कहने वाले लोग उनकी उतनी ही तारीफें करते. लालू को अपनी ताकत का ऐसा गुरूर हो गया था कि रेल मंत्री के तौर पर भी उनके बर्ताव में जरा भी बदलान नहीं आया. उन्हें अपने तरक्कीपसंद वकीलों से हौसला मिलता रहा. ये वो लोग थे जो थोथी बातों को ठोस काम पर तरजीह देते थे.
आज सबने बना ली है कट्टरपंथ से दूरी
आज ऐसा लगता है कि वक्त ने एक चक्र पूरा कर लिया है. अस्सी और नब्बे के दशक में जिस मुस्लिम पर्सनल लॉ को छूने तक की किसी की हिम्मत नहीं थी, उसमें बदलाव का प्रतीक ट्रिपल तलाक बिल आज संसद के एजेंडे में सबसे ऊपर है. आज भारतीय राजनीति का चाल, चरित्र और चेहरा पूरा तरह से बदल चुका है. आज तो कांग्रेस और दूसरे दल भी खुद को मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ खड़े नहीं दिखाना चाहते. यही वजह है कि ट्रिपल तलाक बिल को टालने के लिए कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल ऐसे बहाने तलाश रहे हैं, जिससे उनकी पहचान कट्टरपंथ का साथ देने वाली न बने.
90 के दशक में आरिफ मोहम्मद खान इकलौते ऐसे नेता थे जो मुस्लिम उदारवाद के चेहरे थे. जो मुस्लिम समाज में सुधार की बात करते थे. अपने रुख की वजह से आरिफ मोहम्मद खान को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी. बाद में वीपी सिंह के जनता दल में भी खान को किनारे लगा दिया गया था. आज बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए खुलकर ट्रिपल तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा है. आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए संविधान संशोधन नहीं हो रहा. बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ताकत देने के लिए संसद लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कानून बना रही है.
आज की सरकार ट्रिपल तलाक को अपराध बनाने के अपने प्रस्ताव से पीछे हटने को तैयार नहीं. यही बात बताती है कि भारतीय राजनीति में वक्त कितना बदल गया है. आज देश के सियासी मूड को भांपकर ही कांग्रेस और दूसरे दल इस बात से डरे हैं कि कहीं उन्हें मुस्लिम कट्टरपंथियों का समर्थक न मान लिया जाए. वो मौलवियों के वकील न बता दिए जाएं. लेकिन पुरानी आदत मुश्किल से छूटती है. यही वजह है कि कांग्रेस और कुछ दूसरे दल बहानेबाजी से ट्रिपल तलाक बिल को लटकाने में जुटे हैं.
90 के दशक में कद्दावर नेता के तौर पर उभरे लालू यादव आज की राजनीति में अप्रासंगिक मालूम होते हैं. लालू यादव को सजा मिलने के बाद अगर हम उनके राजनीतिक करियर का मर्सिया पढ़ें तो गलत नहीं होगा. लालू ऐसे नेता हैं, जिन्होंने देश के लोगों की सेवा का सुनहरा मौका गंवा दिया. जेल में उनकी कोठरी के आगे लिखा होना चाहिए- यहां सामाजिक न्याय दिलाने का भरोसा तोड़ने वाले लालू यादव रहते हैं.