चारा घोटाला अपने आपमें उस समय का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा निकलकर सामने आया था जिसकी गूंज देशभर में सुनाई दी थी। चारा घोटाले के पर्दाफाश ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव की पूरी राजनीति को बदलकर रख दिया था। 90 के दशक के सबसे बड़े इस घोटाले में करीब एक हजार करोड़ रूपये ये ज्यादा का गबन फर्जी बिल के जरिए किया गया था जिसकी जांच की प्रक्रिया बेहद लंबी चली थी।
आइये उन अफसरों के बारे में जानते हैं जिन्होंने किया इसका पर्दाफाश-
1- वीएचराव देशमुख
वीएचराव देशमुक उस वक्त वेस्ट सिंहभूम जिला (चाईबासा) के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (एसपी) थे। इस वक्त वे केन्द्रीय गृह मंत्रालय में ब्यूरो ऑफि पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट में डायरेक्टर (एडमिन) हैं। ख़बरों के मुताबिक, तत्कालनी डेप्युटी कमिश्नर वेस्ट सिंहभूम (चाइबासा) अमित खरने वीएचराव देशमुख को अपने पास बुलाया तो उन्होंने इस बारे में छापेमारी का सुझाव दिया। देशमुख का कहना है कि उन्होंने स्थानीय पुलिस को अलर्ट किया और चारे की सप्लाई करनेवाले प्रतिष्ठानों पर छापेमारी की थी। जिसमें उन्हें फर्जी बिल के साथ ही ट्रेजरी अफसरों के स्टैंप और दस्तावेज मिले थे। सप्लायर्स, पशुपालन विभाग और ट्रेजरी विभाग के अधिकारियों के बीच मिलीभगत को साबित करने के लिए ये काफी अहम सबूत थे। इस मामले में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई वही बाद में चारा घोटाले के नाम से जाना गया।
2- अमित खरे
अमित खरे अभी झारखंड सरकार में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी, डेवलपमेंट कमिश्नर है। चारा घोटाले के वकित वह वेस्ट सिंहभूम जिला (चाईबासा) में डिप्यूटी कमिश्नर थे। अमित खरे के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वह पहले ऐसे ऑफिसर थे जिन्होंने पशुपालन विभाग के कोषागार से पैसों के लेनदेन में गड़बड़ की आशंका जाहिर की थी। कोषागार से होने वाले लेनदेन की वह अकाउंटेंट जनरल ऑफिस में हर महीने रिपोर्ट भेजते थे। अमित खरे को यह पता चला कि लगातार बड़ी रकम के बिल पास हो रहे हैं। इसके बाद खरे ने चारे की सप्लाइ करने वालों और जिला पशुपालन अफसर के यहां छापा मारने की ठानी और पहले दौर की जांच के लिए टीम बनाई और कामयाबी पाई।
3- लाल एससी नाथ शाहदेव
लाल एससी नाथ शाहदेव इस वक्त रिटायर होकर गुमला जिले के पालकोट में रह रहे हैं। चारा घोटाला के समय वह वेस्ट सिंहभूम जिला (चाईबासा) में एडिशनल डिप्यूटी कमिश्नर (एडीएम) थे। ऐसा कहा जाता है कि चारा घोटाले में शुरूआती छापों के बाद शाहदेव को पशुपालन विभाग के बिल की जांच सौंपने के साथ ही उनका कोषागार के अकाउंट से मिलान करने को कहा गया। इसके बाद काफी संख्या में फर्जी बिल बरामद हुआ। इसका इस्तेमाल इस्तेमाल पैसे निकालने के लिए हुआ था।
4. फिडलिस टोप्पो
फिडलिस टोप्पो इस वक्त रिटायर होने के बाद झारखंड लोकसेवा आयोग (जेपीएससी) के सदस्य हैं। चारा घोटाले के वक्त टोप्पो वेस्ट सिंहभूम जिला में सदर के सब डिविजनल ऑफिसर थे। ख़बरों के मुताबिक, टोप्पो ने बताया कि छापे मारने की बातें गुप्त रखी गई थी और इस बारे में सिर्फ डिप्युटी कमिश्नर वेस्ट सिंहभूम अमित खरे के नेतृत्व में का कर रहे अफसरों को ही पता थ। उन्होंने बताया कि छाप के वक्त किसी तरह का दबाव नहीं था। उन्होंने सप्लायर्स और अफसरों के घरों से काफी मात्रा में कैश और दस्तावेज बरामद किए थे।
5- बिनोद चंद्र झा
बिनोद चंद्र झा आईएएस रैंक पर रिटायर होने से पहले झारखंड सरकार में जांच अधिकारी और विभागीय कार्यवाही का हिस्सा रहे हैं। चारा घोटाले के वक्त वह एग्जिक्युटिव मजिस्ट्रेट थे। ऐसा कहा जा रहा है कि बिनोद चंद्र बतौर एग्जिक्यूटिव मैजिस्ट्रेट छापे मारने वाली टीम को सहयोग दिया।