अशोक कुमार गुप्ता(सम्पादक) । यूपी सीएम की रेस में अगर अमित शाह और नरेंद्र मोदी के दिमाग में किसी का नाम दौड़ रहा होगा तो केशव प्रसाद मौर्य सबसे आगे होगा । मौर्य का नाम लगभग तय भी कर लिए हो केवल औचारिक़ता बाकी रह गइ है । भाजपा सूत्रो का कहना है कि हमलोग यूपी में मोदी लहर पर चुनाव जीत गए लेकिन अखिलेश और मायावती को पछाड़ने के लिए मॉस लीडर की जरूरत है उस लिहाज से केशव प्रसाद मौर्या सबसे प्रबल सीएम उम्मीदवार है ।
इनके साथ गरीबी और जीविका के लिए चाय बेचने का संयोग भी प्रबल दावेदार बनाता है । जो नाम मिडिया में चल रहा है उसमें मास लीडर केशव मौर्य ही है जो बड़ी मतदाता जनसख्या को बीजेपी के झोली में डालवा सकते है ।
कौशाम्बी में किसान परिवार में पैदा हुए केशव प्रसाद मौर्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होने संघर्ष के दौर में पढ़ाई के लिए अखबार भी बेचे और चाय की दुकान भी चलाई। चाय पर जोर देने का कारण साफ है कि कहीं न कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी इससे जुड़ाव रहा है, ऐसे में सहानुभूति मिलना तय है। मौर्य आरएसएस से जुड़ने के बाद वीएचपी और बजरंग दल में भी सक्रिय रहे।
हिंदुत्व से जुड़े राम जन्म भूमि आंदोलन, गोरक्षा आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल गए। इलाहाबाद के फूलपुर से 2014 में पहली बार सांसद बने मौर्या काफी समय से विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहे हैं। ऐसे में कोई दो राय नहीं कि मौर्या का चयन आरएसएस भी साथ देगी ।
क्या कहता है जातिगत समीकरण
केशव मौर्य कोइरी समाज के हैं और यूपी में कुर्मी, कोइरी और कुशवाहा ओबीसी में आते हैं इनकी आबादी यादव की संख्या के लगभग बराबर है । पिछले लोकसभा चुनाव के साथ अन्य चुनावों में भी बीजेपी को गैर यादव जातियों में इन जातियों का समर्थन मिलता रहा है और यही वजह है कि पार्टी ने पिछड़ी जातियों को अपने समर्थन का संदेश भी दे दिया है। अगर राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो साफ है कि बीजेपी को यूपी की सत्ता की पारी लंबे समय तक रखने के लिए अगड़े-पिछड़े दोनों का समर्थन जरूरी होगा और ऐसे में जातीय संतुलन बनाए रखने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी सीएम बनाएगी यह लगभग तय मन जा सकता है ।
हिंदुत्व से जुड़े राम जन्म भूमि आंदोलन, गोरक्षा आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल गए। इलाहाबाद के फूलपुर से 2014 में पहली बार सांसद बने मौर्या काफी समय से विश्व हिंदू परिषद से जुड़े रहे हैं। ऐसे में कोई दो राय नहीं कि मौर्या का चयन आरएसएस भी साथ देगी ।
क्या कहता है जातिगत समीकरण
केशव मौर्य कोइरी समाज के हैं और यूपी में कुर्मी, कोइरी और कुशवाहा ओबीसी में आते हैं इनकी आबादी यादव की संख्या के लगभग बराबर है । पिछले लोकसभा चुनाव के साथ अन्य चुनावों में भी बीजेपी को गैर यादव जातियों में इन जातियों का समर्थन मिलता रहा है और यही वजह है कि पार्टी ने पिछड़ी जातियों को अपने समर्थन का संदेश भी दे दिया है। अगर राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो साफ है कि बीजेपी को यूपी की सत्ता की पारी लंबे समय तक रखने के लिए अगड़े-पिछड़े दोनों का समर्थन जरूरी होगा और ऐसे में जातीय संतुलन बनाए रखने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी सीएम बनाएगी यह लगभग तय मन जा सकता है ।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
कुछ राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में मायावती को टक्कर देने के लिए भारतीय जनता पार्टी को किसी पिछड़े या दलित चेहरे को आगे लाएगी और सवर्ण चेहरा उसके लिए जिताऊ नहीं हो सकता है। कहा जाता है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में बीजेपी को हिंदुत्व के साथ पिछड़े वर्ग का साथ बढ़त की ओर ले जाता है। यूपी में कल्याण सिंह हो या एमपी में उमा भारती, इसी संयोजन के तहत आगे बढ़े हैं। शिवराज सिंह चौहान भी इसी फेहरिस्त को आगे बढ़ाते हैं। यही नहीं पीएम मोदी भी हिंदुत्व, पिछड़ा और चाय के संयोग से ही सत्ता पर काबिज हुए थे। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि बीजेपी ने अपना पूरा ध्यान अब सोशल इंजीनियरिंग पर दे दिया है। बीजेपी अपने एजेंडे के तहत दलितों को पार्टी से जोड़ना चाहती है। अगर इतिहास की बात करें तो पिछले कई बार यूपी में राजनाथ सिंह और रामप्रकाश गुप्त मुख्यमंत्री सवर्ण जाति के थे और विधानसभा चुनाव में कुछ ख़ास नहीं कर पाए थे। ऐसे में पार्टी ने पिछड़ी जाति के नेता पर दांव लगाएगी ।
कैसा रहा राजनीतिक करियर
जहां तक राजनीतिक करियर का सवाल है तो विश्व हिंदू परिषद से जुड़े केशव 18 साल तक गंगापार और यमुनापार में प्रचारक रहे।2002 में शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी के रूप में राजनीतिक सफर शुरू किया लेकिन बसपा प्रत्याशी राजू पाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा। लेकिन मौर्य के लिए हार का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ, 2007 के चुनाव में भी उन्होंने इसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन आखिरकार 2012 के चुनाव में उन्हें सिराथू विधानसभा सीट से भारी जीत मिली। दो साल तक विधायक रहने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में पहली बार फूलपुर सीट पर बीजेपी का झंडा फहराया।
गैर जाटव दलित वोट भाजपा अपने पक्ष में किया
पीएम मोदी ने दलित नेता और पूर्व रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम को उनकी जयंती पर याद किया। इससे एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की गई है और इसी के तहत बसपा सुप्रीमो मायावती की सीधी टक्कर बीजेपी से है और ऐसे में बीजेपी ने इसकी शुरुआत मायावती के गृह जनपद नोएडा से ही कर दी। बसपा का कैडर वोट अगर बीजेपी की ओर झुकता है तो यह साफ है कि यूपी की सत्ता तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा और 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराया । लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 में से 73 सीटें बीजेपी गठबंधन को मिली थी जबकि राज्य विधानसभा (2012) में उसके 403 विधानसभा सीटों में से केवल 47 विधायक हैं। इस बार 403 सीट में 325 सीट पर जीत दिलाने में बीजेपी का रणनिति सही साबित हुआ । यह पकड़ मजबूत बनी रहे इसके लिए केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाना अनिवार्य है यह बात बीजेपी के चाणक्य अमित शाह भलीभात जानते है ।