। भगवान राम को 14 साल का वनवास मिला था और मुझे न्याय मिलने में 26 साल लग गए। यह कहना है सेना की राजपूत रेजीमेंट के उन शत्रुघ्न सिंह चौहान का, जिन्हें बेहतर काम का ईनाम उनके भ्रष्ट अफसरों ने एके-47 राइफल के कुंदों से पिटाई और झूठे आरोपों में सात साल की सजा के कोर्ट मार्शल के तौर पर दिया। 25 साल की उम्र में पहली पोस्टिंग पर महज 12 दिन बाद आई इस मुसीबत से उबरने में चौहान को 26 साल लग गए। अब आम्र्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल की लखनऊ क्षेत्रीय बेंच ने अभूतपूर्व ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार व सेना प्रमुख पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसमें से चार करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर मैनपुरी निवासी चौहान को मिलेंगे।
इस फैसले से संतुष्ट चौहान का कहना है कि देर तो हुई, लेकिन न्याय मिला है। चौहान को हालांकि सेना के ही एक-दो अफसरों की वजह से ढाई दशक से भी ज्यादा की यह लड़ाई लडऩी पड़ी, लेकिन सेना के प्रति उनकी आस्था, सम्मान और लगाव में लेशमात्र कमी नहीं आई है। वह कहते हैं- भारतीय सेना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेना है। सेना के अधिकारियों का सहयोग न होता तो इस लड़ाई को जीत पाना संभव नहीं था। इस लड़ाई ने नेताओं के प्रति भी उनके मन में सम्मान को पुख्ता कर दिया है। वह कहते हैं- लोग चाहे नेताओं के लिए कुछ भी कहें, लेकिन मैं जिस भी जनप्रतिनिधि के पास गया, सबने मेरा साथ दिया, सड़क से संसद तक मेरे लिए आवाज उठाई। हालांकि चौहान को अपने साथ हुए बर्ताव और लगे आरोपों से दुख भी कम नहीं है। खुद को जन्मजात सैनिक ठहराते हुए वह कहते हैं कि अगर मैं जनरल का बेटा होता या नौकरी करते कुछ वर्ष बीत चुके होते तो मेरे साथ ऐसा न होता, लेकिन मेरे पिता और दादा इसी पल्टन में सूबेदार और सूबेदार मेजर थे और मैं भी सेना में नया था।
मिलेगा लेफ्टिनेंट कर्नल का ओहदा
शत्रुघ्न सिंह चौहान के प्रकरण में अदालती लड़ाई लेकर आगे बढऩे और फैसला कराने वाले अधिवक्ता भानू प्रताप सिंह चौहान बताते हैं कि ट्रिब्यूनल का यह फैसला कई मायनों में अभूतपूर्व है। इससे पहले कभी इतना मुआवजा किसी सैनिक को नहीं दिया गया है। भानू बताते हैं कि ट्रिब्यूनल के फैसले के मुताबिक 1990 में घटना के समय सेकेंड लेफ्टिनेंट रहे शत्रुघ्न सिंह चौहान को अब लेफ्टिनेंट कर्नल का ओहदा मिलेगा। सेना प्रमुख और केंद्र सरकार पर लगाए गए पांच करोड़ रुपये के जुर्माने में से मुआवजे के तौर पर चार करोड़ रुपये शत्रुघ्न को मिलेंगे। साथ ही इस अवधि के एरियर के तौर पर भी डेढ़ से दो करोड़ रुपये भी अलग से मिलेंगे। जुर्माने की रकम में से एक करोड़ रुपये सेना के केंद्रीय कल्याण फंड में जमा किया जाएगा। रकम चार महीने में अदा करनी है।
यह था मामला
25 साल की उम्र और 12 दिन की नौकरी। श्रीनगर के आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र में सेना ने 11 अप्रैल, 1990 को नौजवान सेकेंड लेफ्टिनेंट शत्रुघ्न सिंह चौहान को तलाशी का निर्देश दिया तो उत्साही अफसर कुछ ही देर में स्थानीय मस्जिद के मौलवी लंगड़े इमाम के घर से सोने के 127 बिस्किट और तीन पाकिस्तानी नागरिकों को पकड़ लाया, लेकिन अफसर बिस्किट हजम कर गए। इन बिस्किट का वजन लगभग 27 किलोग्राम था। चौहान ने आवाज उठाई तो उन पर हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया और कोर्ट मार्शल कर सात साल की सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया। अपने साथ हुई नाइंसाफी को लेकर जब चौहान ने ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया तो सेना ने जवाब दाखिल किया कि चौहान के सभी दस्तावेज जल गए हैं।
मन पर हुए इस आघात के बावजूद चौहान ने लड़ाई जारी रखी। आखिरकार आम्र्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य जस्टिस देवी प्रसाद सिंह और प्रशासनिक सदस्य जस्टिस एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंडपीठ ने चौहान को बेदाग मानते हुए न सिर्फ उन्हें नौकरी में बहाल करने, बल्कि प्रोन्नत करने का आदेश भी दिया। आम्र्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा है कि रक्षा मंत्रालय के सचिव एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर जांच कराएं कि आखिर बरामद सोना गया कहां?