गणेशोत्‍सव का आजादी की मुहिम में भी है अनूठा योगदान जाने कैसे

पूरे दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव को सारे देशवासी धूमधाम से मनाते है। इस उत्सव के दौरान बप्पा को घरों, ऑफिसों के साथ सार्वजनिक पंडालों में भी विराजमान करवाया जाता है।

इस दौरान चारों तरफ केवल ‘गणपति बप्पा मोरया’ की गूंज ही सुनाई देती है। माना जाता है की इस दौरान बप्पा अपने सभी भक्तों के ऊपर कृपा बरसाते हैं और उनके सभी दुःख हर लेते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर कैसे गणेशोत्सव की शुरुआत हुई और इसकी इतिहास आखिर कैसा रहा होगा। अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं।

सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। हालांकि तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। जिसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके।

तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

अंग्रेजो की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश को आज़ादी दिलाने के मकसद से शुरु किए गए गणेशोत्सव ने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में एक नया आंदोलन छेड़ दिया।

अंग्रेजों की पूरी हुकूमत भी इस गणेशोत्सव से घबराने लगी। इतना ही नहीं इसके बारे में रोलेट समिति की रिपोर्ट में भी चिंता जताई गई। जिसके बाद से ही साल दर साल गणेशोत्सव पूरे देश में धूम-धाम के साथ मनाया जाने लगा।

 

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