केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के विशेष सचिव (स्वास्थ्य) संजीव कुमार ने बताया है कि दो मार्च को दिल्ली में कोरोना का पहला मामला सामने आया था, जिस व्यक्ति में कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी वह इटली की यात्रा करके लौटा था।
इस व्यक्ति का इलाज राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा है।रोहित दत्ता के रूप में सामने आया था. आज रोहित कोरोना को हराकर घर आ चुके है,पूर्ण रूप से स्वस्थ है । आइए जानते है रोहित दत्ता ने क्या कुछ बताया.
रोहित दत्ता ने लोकनिर्माण टाइम्स से कहा…
मैं जैसे ही इटली
से वापस लौटकर आया मुझे रात में बुख़ार हो गया था. मुझे 99.5 डिग्री बुख़ार था. मुझे लगा कि हो सकता है लंबे हवाई सफ़र से लौटने के कारण ऐसा हुआ हो.
उसके बाद मैंने डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने दवाई दी जिसे तीन दिन खाने के बाद भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. उसके बाद 29 फरवरी को मैंने डॉक्टर को कहा कि कोरोना स्क्रीनिंग करवाना चाहता हूं. उसके अगले दिन मैंने कोरोना स्क्रीनिंग करायी. इसके बाद सरकार को एक मार्च को पता चल गया कि मैं कोरोना पॉज़ीटिव पाया गया हूं और मैं दिल्ली में कोरोना वायरस का पहला मरीज़ हूं.
इसके बाद सरकार की ओर से एक टीम मेरे घर भेज दी गई. उन सब की स्क्रीनिंग की गई जिन जिन से मैं मिला था. सभी लोगों के टेस्ट निगेटिव आए सिर्फ़ मेरा ही टेस्ट पॉज़ीटिव पाया गया था.
उन दो-तीन दिनों के दौरान मैं जिस किसी से भी मिला सभी का टेस्ट निगेटिव था. इसके बाद मुझे भर्ती किया गया और अस्पताल में मुझे जिस तरह की सुविधा मिली वो वाक़ई में विश्व-स्तर की थी.
लेकिन जो लोग अभी इस वायरस की वजह से परेशान हो रहे हैं उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि यह युद्ध जैसी स्थिति है. चीन में हमने देखा कि लोगों को डॉरमेट्री में-टेंट में रखा गया है. तो ऐसे में लोगों को समझना पड़ेगा कि सुविधाओं से ज़्यादा अहम है आपकी सेहत.
शुरू के तीन-चार दिन तो मेरी हालत काफ़ी ख़राब हो गई थी. मुझसे बोला तक नहीं जा रहा था. मेरे पास मेरा मोबाइल था और मैं लोगों के संपर्क में था. मैं थोड़ा ख़राब महसूस कर रहा था. लेकिन समझना तो यह भी चाहिए कि ज़रा सा भी बुखार हो जाता है तो भी जी-ख़राब होने लगता है. उस स्थिति में भी आराम करने की सलाह दी जाती है.
मैंने भी उस स्थिति में आराम किया. फिर जैसे-जैसे मैं ठीक होता गया, मुझे ठीक लगने लगा. मेरे पास मेरा मोबाइल था और फिर मैंने वहीं मूवी देखना शुरू कर दिया. किताबें पढ़नी शुरू कर दी.
मैं तो यही कहूंगा कि आइसोलेशन का जो 14 दिन का वक़्त है वो इंसान को बदल देता है. इस दौरान आदमी सोचता है कि मैंने क्या ग़लती की. मैं आज 45 साल का हूं. मैंने अपनी ज़िंदगी के बीते 30 सालों पर ग़ौर किया तो समझ आया कि ज़िंदगी तो मैंने यूं ही सिर्फ़ दौड़ने-भागने में गुज़ार दी.
जो लोग परेशान हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि सबसे पहले डॉक्टर के पास जाएं. अपना टेस्ट करें. जितनी जल्दी जाएंगे, उतनी जल्दी लौटेंगे.