क्यों बेहद जरूरी बन गया है अखिलेश-कांग्रेस गठबंधन?

अखिलेश यादव और कांग्रेस के बीच गठबंधन यूं ही परवान नहीं चढ़ा। यह दोनों के लिए वक्ती जरूरत बन गया था। विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, खास तौर पर अखिलेश यादव के लिए जहां दोबारा सत्ता में लौटकर अपनी साख कायम रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के सामने सियासी जमीन बचाने की।akhilesh-yadav_1484157269
इसी के चलते एक-दूसरे के नजदीक आना दोनों की मजबूरी भी बन गई थी। हालांकि सूबे के कांग्रेसी शुरू से ही गठबंधन को लेकर ना-ना करते रहे लेकिन सिम्बल की दावेदारी को लेकर अखिलेश के पक्ष में चुनाव आयोग का फैसला आने के साथ ही गठबंधन परवान चढ़ गया। दोनों तरफ खाका तैयार है। अब सिर्फ औपचारिक एलान का इंतजार है।

अखिलेश यादव शुरू से ही प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन की वकालत करते रहे हैं, लेकिन तब पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर गठबंधन की संभावनाओं को खत्म कर दिया था।

अखिलेश का मानना है कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो 300 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं। मैदान फतह करने के लिए गठबंधन करना दोनों को ही मुफीद लग रहा था और आखिरकार यह अंजाम तक जा ही पहुंचा।

अखिलेश की सरपरस्ती से गुरेज नहीं

सूबे में अपनी खोई ताकत वापस पाने के लिए छटपटा रही कांग्रेस को अखिलेश यादव की सरपरस्ती से भी गुरेज नहीं है। मंगलवार को कांग्रेस के बड़े नेताओं के रुख से साफ हो गया कि पार्टी अखिलेश की अगुवाई में चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है।

यूपी में कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित ने यह कहते हुए ‘सरेंडर’ कर दिया कि सीएम के दो कैंडिडेट तो हो नहीं सकते, इसलिए वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले रही हैं।

शीला को सीएम का चेहरा बनाने का दांव बेअसर
चुनाव से पहले माहौल बनाने के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का दांव तो चला लेकिन यह बहुत कारगर साबित नहीं हुआ। अव्वल तो शीला बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं हुईं।

जो थोड़े-बहुत दौरे किए भी, उनमें कोई ऐसा करिश्मा नहीं दिखा सकीं कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस चुनावी नैया पार लगती दिखाई देती हो।

यूपी के कांग्रेसी नेताओं पर आलाकमान को नहीं भरोसा

2012 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई फजीहत के बाद कांग्रेस आलाकमान का सूबे के कांग्रेसी नेताओं पर भरोसा नहीं रह गया है। इसी के चलते उसने सूबे की सियासत के बारे में अहम फैसला लेने में यहां के नेताओं को दूर ही रखा।

चुनावी रणनीति की बागडोर प्रशांत किशोर के हाथ में थमाने के पीछे भी संभवत: यही वजह रही। सूबे के कांग्रेसी नेता प्रशांत किशोर के साथ भी तालमेल नहीं बिठा सके और पीके को यहां से बोरिया-बिस्तर समेट लेना पड़ा।

जानकारों की मानें तो सूबे के कांग्रेसियों की फितरत से वाकिफ हो चुके प्रशांत किशोर ने ही कांग्रेस आलाकमान को यूपी के नेताओं को अलग रखकर अखिलेश से गठबंधन की बातचीत करने की सलाह दी थी।

पर्दे के पीछे संदीप दीक्षित भी रहे सक्रिय
अखिलेश व कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन की जमीन तैयार करने में शीला दीक्षित के पुत्र व पूर्व सांसद संदीप दीक्षित की भी अहम भूमिका रही। अखिलेश व संदीप अच्छे दोस्त हैं। सूत्रों की मानें तो संदीप कई बार लखनऊ आए और अखिलेश से उनकी लंबी बातचीत हुई। संदीप और प्रशांत किशोर के फीडबैक के आधार पर ही कांग्रेस आलाकमान ने गठबंधन की बात आगे बढ़ाई।

अखिलेश के साथ कदमताल बड़ी चुनौती

कांग्रेस आलाकमान ने जिस तरह सूबे के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को किनारे करके गठबंधन को अमली जामा पहनाया है, उसे देखते हुए अखिलेश के साथ कदमताल उसके लिए बड़ी चुनौती होगी। देखने वाली बात यह भी होगी कि प्रदेश के कांग्रेसी दिग्गज अपने नए सियासी हमसफर के साथ कितना बेहतर कदमताल कर सकेंगे।

कांग्रेसी विधायक भी चाहते थे गठबंधन
जानकारों की मानें तो कुछ दिन पहले विधानसभा चुनाव को लेकर राहुल गांधी ने पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई थी। इसमें 20 विधायकों ने सपा से चुनावी गठबंधन की राय दी थी।

अखिलेश और राहुल कर सकते हैं मंच साझा
जानकारों का कहना है कि गठबंधन की घोषणा के बाद राहुल और अखिलेश साथ-साथ प्रचार कर सकते हैं। फिलहाल जो योजना बनाई जा रही है, उसमें राहुल और अखिलेश की आधा दर्जन रैलियां हो सकती हैं।

प्रियंका-डिम्पल हो सकती हैं स्टार प्रचारक
सूत्रों के मुताबिक प्रियंका और डिम्पल यादव की जोड़ी गठबंधन के लिए स्टार प्रचारक के रूप में काम करेगी। दोनों की तस्वीर वाले पोस्टरों से सियासत में सरगर्मी बढ़ाने की कवायद तेज हो गई है।

 

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