अदालत ने विवेचक बदलने के बहाने पर भी तल्ख टिप्पणी की और कहा-यह बहाना नहीं चलेगा। जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस डॉ. विजय लक्ष्मी ने यह आदेश अब्दुल माजिद व अन्य की याचिका पर दिया।
याचिका में कहा गया था कि पिछले साल मार्च में उनके खिलाफ काकोरी थाने में दुराचार, धोखाधड़ी सहित दहेज रोकथाम अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करवाई गई थी।
कहा गया कि ये मामले माजिद के अपनी पत्नी को तलाक के लिए दायर याचिका के बाद दर्ज करवाए गए। वहीं तलाक पर एक समझौता कराया जा चुका है, इसके बावजूद याची को परेशान किया जा रहा है।
इस पर हाईकोर्ट ने 2 मई 2016 को पुलिस के जांच अधिकारी को आदेश दिया कि अगर दोनों पक्षों में समझौता हुआ है तो उसकी जांच की जाए। अदालत ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी अपनी रिपोर्ट में यह भी बताए कि तलाक के लिए अर्जी दी गई है या नहीं।
वहीं याची की गिरफ्तारी पर अगले आदेशों तक रोक लगा दी गई थी और उन्हें पांच दिन में जांच अधिकारी को अपने दावों के संबंध में उपलब्ध साक्ष्य देने के लिए कहा गया था।
हमें यह कष्ट के साथ कहना पड़ रहा है कि पुलिस बड़ी संख्या में मामलों में ऐसे बहाने बना रही है कि जांच अधिकारी बदल गए हैं। तारीखों को बार-बार स्थगित करवाने के लिए यह बहाना नहीं चलेगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई 25 जनवरी को होगी और उस दिन 10 हजार रुपये का जुर्माना जांच एजेंसी देगी। यह जुर्माना उस अधिकारी के वेतन से वसूला जाएगा जिसे कोर्ट की प्रक्रिया में विलंब को दोषी माना जाएगा।
जुर्माने की रकम अवध बार एसोसिएशन के लाइब्रेरी फंड में जमा करवाई जाएगी। अदालत ने फैसले की कॉपी आईजी लखनऊ जोन को भेजने के भी निर्देश दिए हैं, जिन्हें इनका पालन करवाना होगा। अगली तारीख पर सीओ मलिहाबाद को तलब किया गया है।
याचियों ने गुजारिश की कि यह घटना सीसीटीवी में कैद हुई थी लिहाजा फुटेज की जांच करवाकर सच्चाई सामने लाई जानी चाहिए। अदालत ने 18 नवंबर 2016 को अपने निर्देशों में पुलिस के जांच अधिकारी को रोजाना सीओ के सुपरविजन में मामले की जांच करने के लिए कहा था।
साथ ही सीसीटीवी फुटेज का विश्लेषण कर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। अदालत ने आरोपियों की गिरफ्तारी पर अगले आदेश तक रोक लगाते हुए आरोपियों व क्लब के प्रबंधकों को जांच में पूरा सहयोग करने के लिए भी कहा था।
मामले की सुनवाई के दिन 11 जनवरी को पुलिस की गुजारिश पर हाईकोर्ट ने मामले को 28 फरवरी के लिए टाल दिया है। हालांकि कोर्ट की कार्यवाही में देरी और निर्देशों पर अमल न होने पर जांच अधिकारी पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यह जुर्माना जांच अधिकारी के वेतन से वसूला जाएगा।