कोरोना संक्रमण के खौफ से आत्मा की शांति के लिए होने वाले कर्मकांडों पर भी असर पड़ा है। स्थिति यह है कि स्वजनों की मृत्यु के बाद अनेक परिजन उनकी आत्मा की शांति के लिए दसवां और तेरहवीं जैसे संस्कारों से परहेज कर रहे हैं। कई परिवारों की ओर से इन्हें स्थगित तक कर दिया गया है। मां, पिता या भाई के निधन के बाद घरों पर ऐसे संस्कार नहीं कराए जा सके।
स्टेनली रोड पर रहने वाले सीनियर एडवोकेट बीके श्रीवास्तव के निधन के बाद ऐसा ही हुआ। एक निजी अस्पताल में कोरोना से हुई मौत के बाद अंतिम संस्कार करने वाले इकलौते बेटे धीरज श्रीवास्तव भी संक्रमित हो गए। इनके साथ ही उनकी मां और मासूम बेटी भी संक्रमण की चपेट में आ गईं। ऐसे में दसवां की परपंरा का निर्वाह नहीं कराया जा सका। तेरहवीं के अलावा अन्य कर्मकांड भी नहीं हो सके। रिश्तेदारों, परिजनों की सलाह पर तीन दिन बाद उनके आवास पर शांति पाठ कराकर आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई।
इसी तरह कोरोना से नहीं रहे बादशाही मंडी के 40 वर्षीय उदय सिंह का भी बीते दिनों कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से शहर के एक अस्पताल में निधन हो गया। इस परिवार में भी संक्त्रस्मण फैलने के डर से न दसवां हुआ और न तेरहवीं ही कराई गई। परिवार के लोगों ने फैसला लिया कि संक्रमण कम होने के बाद घर पर ब्राह्मण भोज करा दिया जाएगा। परिवार के लोगों ने आत्मा की शांति के लिए शांति पाठ कराया। ऐसे कई परिवार हैं, जो अब दसवां और तेरहवीं की जगह सिर्फ शांति पाठ की करा रहे हैं।
सनातनी परंपरा में किसी के निधन के बाद दसवां और फिर तेरहवीं का श्राद्ध कराना अनिवार्य है। पीपल वृक्ष में दिवंगत की आत्मा के तर्पण-अर्पण के लिए घट बांधा जाता है। लगातार दसवें दिन तक उसमें जल दिया जाता है। इसके बाद तेरहवीं कराई जाती है। मान्यता है कि इसके बिना आत्मा को शांति नहीं मिल पाती।