किसान के लिए ‘कामधेनु’ बनी बूढ़ी गाय

आनंद दुबे, भोपाल। अमूमन दूध देना बंद करने के बाद बूढ़ी हो रही गाय का लोग तिरस्कार करने लगते हैं, लेकिन ऐसी ही देसी प्रजाति की एक गाय किसान के लिए कामधेनु बन गई है। उसके गोबर, गौमूत्र से बनी जैविक खाद से वह दस एकड़ में खेती कर रहा है। खास बात यह है कि उन्हें सिर्फ बीज की ही लागत लगती है। कीटनाशक भी वह जैविक पद्धति से तैयार करते हैं।

राजधानी के खजूरीकला में रहने वाले मिश्रीलाल राजपूत की गिनती उन्नात किसानों के रूप में होती है। वे बताते हैं कि 10 साल पहले तक खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे, लेकिन लगातार कम होते उत्पादन की चिंता घर कर रही थी। उसे देखते हुए जैविक खेती कर जमीन की उर्वरता वापस लाने का निश्चय किया। उसी दौरान घर की एक गाय ने दूध देना बंद कर दिया। उसे जंगल में छोड़ने के बजाए खेती में उसके गोबर और गौमूत्र का इस्तेमाल शुरू कर दिया। आज उस ‘कामधेनु” के कारण ही जमीन पहले की तरह उर्वर हो गई है।

इसके अलावा फसल में खाद खरीदने के लिए एक रुपए भी खर्च नहीं करना पड़ता। स्थिति यह है कि जैविक तकनीक से पैदा सब्जियां खरीदने लोग अब खेत पर आते हैं। मिश्रीलाल के मुताबिक, गोबर, गौमूत्र आदि से तैयार 200 लीटर अमृत पानी खाद के रूप में एक एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त होता है। इसे वह पानी के साथ मिलाकर जमीन को देते हैं। फसल में छिड़काव करते हैं। यह प्रक्रिया एक माह में एक बार करना होती है।

कैसे बनता है अमृतपान

10 किलो देसी गाय का गोबर, पांच लीटर गौमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो किसी भी दाल का आटा, 200 ग्राम पीपल या बरगद के पेड़ की जड़ के पास की मिट्टी का मिश्रण 200 लीटर पानी में मिलाकर 48 घंटे तक छोड़ दें। अमृतपानी तैयार हो जाता है।

जीवा अमृत

अमृत पानी की तरह जीवा अमृत भी खाद का काम करता है। 100 किलो गोबर में एक किलो गुड़, एक किलो दाल का आटा और एक किलो पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी का इस्तेमाल करना होता है। जीवा अमृत खाद के रूप में तैयार हो जाता है।

जैविक खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है

कृषि विशेषज्ञ और रिटायर्ड कृषि संचालक डॉ. जीएस कौशल ने बताया कि एक गाय से 10 एकड़ में जैविक खेती की जा सकती है। एक गाय औसत प्रतिदिन 10 किलो गोबर और पांच लीटर गौमूत्र देती है। इससे अमृतपानी व जीवा अमृत बनाकर खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जैविक खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। जैविक पद्धति से पैदा उपज में पौष्टिकता कई गुना अधिक होती है। लगातार रासायनिक खेती होने से जमीन बंजर हो गई है। इससे लागत तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन उत्पादकता स्थिर है। डॉ. कौशल के मुताबिक, जैविक खेती भविष्य की खेती है।

फसल पौष्टिक, स्वाद लाजवाब

मिश्रीलाल के मुताबिक, रासायनिक खेती से जैविक खेती अपनाने में एक-दो साल तक पैदावार में कुछ कमी सामने आती है। जैसे-जैसे जमीन की उर्वरता वापस आने लगती है, पैदावार बराबर होने लगती है। फसल पौष्टिक होने के साथ स्वादिष्ट भी होती है।

जैविक कीटनाशक

फसलों पर कीट प्रकोप होने पर मिश्रीलाल उनका सफाया भी जैविक कीटनाशक के जरिए करते हैं। इसके लिए धतूरा, अकौआ, नीम, सीताफल, करंज की 2-2 किलो पत्तियों को पानी में अच्छी तरह उबालते हैं। इसके बाद अमृतापानी में मिलाकर स्प्रे करते हैं।

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