कनाडा जैसी गर्मी का खतरा 150 गुना बढ़ा

कनाडा और अमेरिका के कई हिस्सों में पिछले दिनों जानलेवा गर्मी और लू ने भयंकर तबाही मचाई. वैज्ञानिकों और जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि ठंडे इलाकों में ये हालात खतरे की घंटी हैं. वैश्विक तापमान धरती को जला रहा है.जलवायु वैज्ञानिकों ने विभिन्न मॉडलों का अध्ययन कर इस बात की तस्दीक की है कि जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से अमेरिका और कनाडा के कई इलाके और गरम हुए हैं. जून के आखिरी दिनों में कनाडा और अमेरिका में लू ने कहर बरपाया था. घरों में अकेले रहते बुजुर्ग मारे गए. जंगल की आग भड़क उठी जिसने एक गांव को ही निगल लिया. वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्म ईंधनों को जलाने से जलवायु में इतना बदलाव हो चुका है कि तापमान की अत्यधिकताएं और तेज हो चुकी हैं. वर्ल्ड वेदर एट्रीब्युशन इनीशिएटिव (डब्लूडब्लूए) के 27 वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम की एक त्वरित स्टडी के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते उत्तरी अमेरिका की गर्म लहरों के सबसे ज्यादा गरम दिन, 150 गुना अपेक्षित थे और दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा गरम थे. अमेरिका के ओरेगन और वॉशिंगटन में तापमान के रिकॉर्ड टूटे और कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में भी. 49.6 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम मियाद पर तापमान पहुंच गया जो शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के बिना तो कतई नामुमकिन था. असाधारण लेकिन अवश्यम्भावी हकीकत इस अध्ययन की अभी अन्य वैज्ञानिकों ने समीक्षा नहीं की है. ये इस बात का भी सबसे ताजा उदाहरण है कि वैज्ञानिक किस तरह मॉडलों के जरिए, मौसमी भीषणताओं में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की भूमिका का त्वरित आकलन कर पा रहे हैं. इसके निष्कर्षों ने अमीर देशों में व्याप्त इस मिथक को ध्वस्त किया कि जलवायु परिवर्तन उनसे बहुत दूर के लोगों या आने वाले समय में किसी को नुकसान पहुंचाएगा, उन्हें नहीं. स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख में इन्स्टीट्यूट फॉर एट्मोस्फरिक ऐंड क्लाइमेट साइंस से जुड़ी और ताजा अध्ययन की सह लेखक सोनिया सेनेविरत्ने कहती हैं, “हम एक अनजान इलाके में दाखिल हो रहे हैं. अगर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नहीं रोक पाते हैं और वैश्विक तापमान पर भी काबू नहीं कर पाते हैं तो और भी ऊंचे तापमानों तक पहुंचेंगे.” तस्वीरों मेंः कहां कहां टूटे गर्मी के रिकॉर्ड अधिकारियों का अनुमान है कि इन तापमानों की वजह से सैकड़ों लोग मारे गए हैं और ये तापमान अपने ऐतिहासिक रिकॉर्डों को भी लांघ गए हैं. शोधकर्ता ये पता लगाने के लिए जूझ ही रहे हैं कि आखिर कितनी दफा गर्मी की ये लहर या लू आ सकती हैं. उनका सबसे अच्छा अंदाजा यही है कि ऐसे तापमान हर हजार साल में एक बार ही आ सकते हैं. तापमान इतना अधिक कैसे हुआ, यह बताने के लिए उनके पास दो सिद्धांत हैं. कैसे हुआ इतना तापमान एक व्याख्या यह है कि जेट स्ट्रीम यानी जेट धारा कहलाने वाली वायु लहर में आए घुमाव से एक जगह फंसी गरम हवा का एक ताप-गुंबद बन जाता है. पहले से मौजूद सूखे और असाधारण वायुमंडलीय स्थितियों से मिलकर ऐसा होता है. यह मौसमी परिघटना, जलवायु में आए परिवर्तनों के साथ मिलकर तापमान में भारी उछाल ले आती है. इस रिसर्च के लेखकों का कहना है कि कुल मिलाकर “आंकड़ों के रूप में इसे दरअसल बदकिस्मती ही कह लीजिए जिसे जलवायु परिवर्तन और तीव्र बना देता है.” एक वैकल्पिक और ज्यादा कष्टकारी संभावना ये हो सकती है कि जलवायु प्रणाली उस दहलीज को पहले ही पार कर चुकी हो जहां हल्की सी तपिश भी पहले के मुकाबले तापमान में और तेजी से उछाल ले आती है. अगर ये सच है तो इसका मतलब ये हुआ कि ऐसी रिकॉर्ड तोड़ लू, किसी क्लाइमेट मॉडल के अनुमानों और अंदाजों के पहले से ही चली आ रही हो सकती है. ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में एन्वायरेन्मेंटल चेंज इन्स्टीट्यूट से जुड़े और अध्ययन के सह लेखर फ्रीडेरिके ओटो कहते हैं, “हम एक अप्रत्याशित चीज देख रहे हैं. यह एक बहुत ही अनोखी परिघटना है और हम इस संभावना से इंकार नहीं कर सकते कि हम आज जिस चरम तपिश को महसूस कर रहे हैं वह यूं वैश्विक तापमान के उच्च स्तरों में ही संभव हो सकती थी.” जर्मनी के पोट्सडाम इन्स्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च में अर्थ सिस्ट्मस एनालिसिस के प्रमुख स्टीफान राह्मश्टोर्फ कहते हैं कि गर्मी के पिछले रिकॉर्ड इतने बड़े अंतरों से “चूर-चूर” हो चुके हैं कि मानो “कुछ और ही चल रहा होगा.” राह्मश्टोर्फ इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे लेकिन उनका कहना है कि “अध्ययन सही है और आला दर्जे का है.” गर्म लहर पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जलवायु परिवर्तन से गरम लहरें ज्यादा तपिश वाली, ज्यादा देर तक चलने वाली, और ज्यादा आमफहम हुई हैं. ग्रीनहाउस की तरह सूरज की गर्मी को कैद करने वाली गैस छोड़ने वाले फॉसिल ईंधनों को जलाकर इंसानों ने धरती को पूर्व औद्योगिक स्तरों से करीब 1.1 सेल्सियस ऊपर तक गरम कर दिया है. इससे रिकॉर्ड तोड़ तापमान के मौके बढ़ जाते हैं. कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया के लिटन गांव में दो जुलाई को गर्मी ने रिकॉर्ड तोड़ डाला. तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पुराने रिकॉर्ड से पांच डिग्री सेल्सियस ऊपर जा पहुंचा. दूसरे ही दिन गांव को जंगल की आग ने निगल लिया. तस्वीरेंः कैसे पूजी जाती है प्रकृति लिटन से जान बचाकर निकले गॉर्डन मुरे ने सरकारी टीवी चैनल सीबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में बताया कि, “हम लोगों की छोटी सी, देहाती, मूल निवासियों वाली, कम आय वाली बिरादरी है और हम लोग जलवायु परिवर्तन की नोक पर हैं. लेकिन यह तो किसी को नहीं बख्शेगा, हम तो आसन्न खतरे की आहटें हैं.” गर्म लहरों का सेहत पर असर पिछले कुछ साल में सबसे जानलेवा तबाहियों में से एक है, गरमी की लहर. इंसानी देह को वह तोड़ कर रख देती है. गरमी दिल, फेफड़े और गुर्दे की बीमारियों को और भड़का देती है और डायबिटीज को भी बढ़ाती है. बुजुर्गों, बच्चों, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों और बेघरों पर इसका ज्यादा कहर टूटता है. उत्तर-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में ठंडक भरा, अक्सर बरसातों वाला मौसम रहता है. दक्षिणी राज्यों के मुकाबले यहां कुछ ही लोग एयर कंडीशनिंग का इस्तेमाल करते हैं. आग उगलते तापमान में तबीयत बिगड़ने से, अधिकारियों का अनुमान है कि, ओरेगन में 107 लोगों की मौत हुई. इनमें से अधिकतर 60 या उससे ज्यादा की उम्र के लोग थे. ओरेगन के सबसे बड़े शहर पोर्टलैंड में ओरेगन हेल्थ ऐंड साइंस यूनिवर्सिटी में आपातकालीन चिकित्सक ब्रैंडन मॉन कहते हैं कि रात में भी मौसम तपा ही रहा तो लोगों को उबरने का मौका ही नहीं मिल पाया. पोर्टलैंड में जून के आखिरी दिनों में तीन दिन आसमान आग उगलता रहा और तापमान 46.7 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था. वह कहते हैं कि बहुत से लोगों को लगा कि पिछली गर्मियों की तरह इस बार भी झेल लेंगे लेकिन ये तो बिल्कुल ही अलग सी चीज थी. देखेंः जरूरी है महासागरों की सेहत मॉन कहते हैं कि एक औसत वर्ष में ओरेगन के अस्पतालों में गरमी से निढाल हुए कई मरीजों का इलाज किया जाता है. तबीयत ठीक न लगी तो घर में ही आराम या उपचार कर सकते हैं लेकिन कुछ लोगों को लू लगने पर ज्यादा गंभीर लक्षण होते हैं. उनके शब्दों में, “हमें इस साल ऐसे मरीज ज्यादा दिखे.” मई में नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि 1991 से, गर्मी से होने वाली तीन में से एक मौत की वजह जलवायु परिवर्तन है. स्विट्जरलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी में क्लाइमेट चेंज और हेल्थ की ग्रुप लीडर और अध्ययन की सह लेखक आना विसेडो के मुताबिक उत्तरी अमेरिका की गर्मी की लहर दिखाती है कि “ऐसी चरम किस्म की परिघटनाओं के लिए मौजूदा अनुकूलन प्रणालियां नाकाफ़ी हैं.” 2003 में यूरोप में 70 हजार लोगों की जान लेने वाली गर्म लहरों की संभावना ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से दोगुना हो चुकी थी. यानी ग्लोबल वॉर्मिंग ने उस गर्मी को अवश्यंभावी बना दिया था. अकेले पेरिस में ही जलवायु परिवर्तन ने गर्मी से होने वाले मौतों का जोखिम 70 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था. 500 लोगों की मौत हुई थी. गर्म लहर के थपेड़ों से बचने के उपाय लोगों को शेड जैसी सार्वजनिक जगहों में रहकर या एयर कंडीशनिंग जैसे उपायों से गर्म लहर या लू से निजात पा सकते हैं. खूब पानी पिएं और असहाय और बुजुर्ग पड़ोसियों का ध्यान रखें. शहरों में स्थिति थोड़ा पेचीदा हो सकती है जहां कंक्रीट की इमारतें और डामर की सड़कें गर्मी को सोखकर आसपास के तापमान को और ज्यादा बढ़ा देती हैं. स्थानीय प्रशासन इस बोझ को कम कर सकते हैं- शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर, नहरें निकालकर और पार्क बनाकर. वैसे तो लोग ज्यादा गरम तापमानों में रहने के आदी हो जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का जोर इस बात पर है कि उत्सर्जनों पर अकुंश लगाने वाली जलवायु नीति ही गर्म लहरों की ताकत, अवधि और फ्रीक्वेंसी तय करेगी. 2015 में विश्व नेताओं ने ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का वादा किया था. लेकिन उनकी मौजूदा नीतियां, जर्मन रिसर्च ग्रुप क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के मुताबिक, धरती को करीब तीन डिग्री सेल्सियस तक गरम कर रही हैं. डब्लूडब्लूए के अध्ययन ने पाया कि दो डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वॉर्मिंग, उत्तरी अमेरिका जैसी गर्म लहरों को इतना मुमकिन बना देगी कि वे हर पांच से दस साल में कहर बरपाएंगी.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com