परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें पांच दिसंबर को पीजी में नामांकन के लिए परीक्षा देनी थी, किंतु उनके इंटर्नशिप प्रमाण पत्र सत्यापन में फर्जी पाए जाने के बाद उन्हें परीक्षा से वंचित कर दिया गया। ऐसे छात्रों का भविष्य अब चौपट होने के कगार पर है।
पीड़ित छात्राें की मानें तो उनके सीनियर्स ने बताया था कि 50 हजार से एक लाख में इंटर्नशिप प्रमाणपत्र मिल जाएगा। वह खुद भी ऐसे ही प्रमाणपत्रों के सहारे पीजी की पढ़ाई कर रहे हैं। इस पर उन्हें विश्वास हो गया और वे फर्जी इंटर्नशिप प्रमाणपत्र बनवाने वाले रैकेट के जाल में फंस गए।
जालसाजी का शिकार होने वालों में केरल, तमिलनाडु, नागालैंड, असम, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों तक के छात्र शामिल हैं। बता दें कि दिल्ली मेडिकल काउंसिल से 17 छात्रों के प्रमाणपत्रों की पहली खेप सत्यापन के लिए आई तो जिला अस्पताल जौनपुर ने सभी को फर्जी करार दे दिया था।
मामला खुलते देख जालसाजों ने काउंसिल को एक चिकित्सा अधिकारी का फर्जी पत्र भेजा जिसमें कहा गया था दो के प्रमाणपत्र सही है गलती से उनका भी नाम चला गया है। इसके बाद दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने जिला अस्पताल को दुबारा पत्र भेजा तो अस्पताल प्रशासन चौंक गया।
मामला खुलने के बाद तो कई किस्तों में प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए आए और जिला अस्पताल ने उनके फर्जी होने की रिपोर्ट भेज दी। हाल ही में 15 और प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए जिला अस्पताल प्रशासन के पास आए हैं। अब तक करीब 50 से अधिक प्रमाणपत्रों का सत्यापन हो चुका है।
जिला अस्पताल के सीएमएस डा. एसके पांडेय का कहना है कि कोई रैकेट बड़े पैमाने पर काम कर रहा है जो पीजी करने वाले छात्रों का लंबे समय से शोषण करने में जुटा है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में एमसीआई को पत्र लिखा जाएगा।