विश्लेषकों का मानना है कि चीन और अमेरिका के बीच की तनातनी ने एशिया में हथियारों की एक दौड़ छेड़ दी है और वे एशियाई देश भी मिसाइलों का जखीरा जमा कर रहे हैं, जो आमतौर पर निष्पक्ष रहते थे.चीन बड़ी तादाद में डीएफ-26 मिसाइलें बना रहा है. ये मिसाइल चार हजार किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. उधर अमेरिका भी प्रशांत क्षेत्र और चीन के साथ विवाद को ध्यान में रखते हुए हथियार विकसित कर रहा है. इस तनातनी का नतीजा यह हुआ है कि अन्य एशियाई देश भी मिसाइलें खरीद रहे हैं या विकसित कर रहे हैं. सैन्य अधिकारियों और विश्लेषकों का कहना है कि इस दशक के आखिर तक एशिया में ऐसी मिसाइलों के बड़े-बड़े जखीरे तैयार हो जाएंगे, जो लंबी दूरी तक मार कर सकती हैं. पैसिफिक फोरम के अध्यक्ष डेविड सानतोरो कहते हैं, “एशिया में मिसाइलों का परिदृश्य बदल रहा है, और बहुत तेजी से बदल रहा है.” विशेषज्ञ मानते हैं कि खतरनाक और आधुनिक मिसाइलें तेजी से सस्ती हो रही हैं और जब कुछ देश उन्हें खरीद रहे हैं तो उनके पड़ोसी भी पीछे नहीं रहना चाहते. मिसाइलें न सिर्फ अपने दुश्मनों पर भारी पड़ने का जरिया होती हैं बल्कि ये भारी मुनाफा कमाने वाला निर्यात उत्पाद भी हैं. सानतोरो कहते हैं कि इस आने वाले समय में हथियारों की यह दौड़ क्या नतीजे देगी, यह कहना तो अभी मुश्किल है लेकिन शांति स्थापना में और शक्ति संतुलन में इन मिसाइलों की भूमिका संदिग्ध ही है. वह कहते हैं, “ज्यादा संभावना इस बात की है कि मिसाइलों का प्रसार एक दूसरे पर संदेह बढ़ाएगा, हथियारों की दौड़ को हवा देगा, तनाव बढ़ाएगा और अंततः संकट ही पैदा करेगा, जिनमें युद्ध भी शामिल हैं.” घरेलू मिसाइलें एक गोपनीय सैन्य रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक कमांड फर्स्ट आईलैंड चेन पर लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें तैनात करने की योजना बना रही है. इस नेटवर्क में रूस और चीन के पूर्वी तटों को घेरे हुए देश जैसे कि जापान, ताईवान और अन्य प्रशांतीय द्वीप शामिल हैं. देखेंः बढ़ रहे हैं परमाणु हथियार नए हथियारों में लॉन्ग रेंज हाइपरसोनिक वेपन भी शामिल है, जो 2,775 किलोमीटर की दूरी तक वॉरहेड ले जा सकती है और वह भी ध्वनि की गति से पांच गुना तेज रफ्तार से. इंडोपैसिफिक कमांड के एक प्रवक्ता ने हालांकि कहा है कि ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है कि ये मिसाइल कहां तैनात होंगी. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों में से कोई भी फिलहाल इन मिसाइलों को अपने यहां तैनात करने को लेकर राजी नहीं हुआ है. मसलन, जापान यदि अपने यहां इस मिसाइल की तैनाती की इजाजत देता है तो उसे चीन की नाराजगी बढ़ने का खतरा उठाना होगा. और यदि इसे अमेरिकी क्षेत्र गुआम में तैनात किया जाता है तो वहां से यह चीन तक पहुंच नहीं पाएगी. सबको चाहिए मिसाइल अमेरिका के सहयोगी देश अपनी मिसाइलें भी बना रहे हैं. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में ऐलान किया था कि आने वाले दो दशको में वह आधुनिक मिसाइल बनाने पर 100 अरब डॉलर खर्च करेगा. ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटिजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के माइकल शूब्रिज कहते हैं कि यह सही सोच है. वह कहते हैं, “चीन और कोविड ने दिखा दिया है कि संकट के समय, और युद्ध में अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन पर निर्भर रहना एक गलती होती है.इसलिए ऑस्ट्रेलिया में उत्पादन क्षमता होना एक समझदारी भरी रणनीतिक सोच है.” जापान ने लंबी दूरी की एक हवा से मार करने वाली मिसाइल पर करोड़ों खर्च किए हैं और अब वह जहाज-रोधी मिसाइल विकसित कर रहा है, जिसे ट्रक पर से लॉन्च किया जा सकता है और जो एक हजार किलोमीटर तक मार करेगी. अन्य अमेरिकी सहयोगी दक्षिण कोरिया ने भी अपना बेहद तीव्र मिसाइल कार्यक्रम शुरू कर रखा है. हाल ही में अमेरिका के साथ हुए एक समझौते से इस कार्यक्रम में और मजबूती आई. उसकी हायुनमू-4 मिसाइल का दायरा आठ सौ किलोमीटर है, यानी चीन के काफी भीतर तक. चीन चिंतित, अमेरिका बेपरवाह जाहिर है, चीन भी इन गतिविधियों पर नजर रख रहा है. बीजिंग स्थित रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ जाओ टोंग ने हाल ही में लिखा था, “जब अमेरिका के सहयोगियों की लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता बढ़ती है तो क्षेत्रीय विवाद में उनके इस्तेमाल की संभावना भी बढ़ती है.” तस्वीरों मेंः आबुधाबी में हुआ हथियारों का मेला पर चीन की इन चिंताओं के बावजूद अमेरिका का कहना है कि वह अपने सहयोगियों को प्रोत्साहित करता रेहगा. अमेरिकी संसद की हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमिटी के सदस्य, सांसद माइक रोजर्स कहते हैं, “अमेरिका अपने सहयोगियों और साझीदारों को उन रक्षा क्षमताओं में निवेश को प्रोत्साहित करता रहेगा, जो समन्वयित अभियानों के अनुकूल हैं.” विशेषज्ञों की चिंता सिर्फ इन मिसाइलों को लेकर नहीं बल्कि इनकी परमाणु क्षमताओं को लेकर भी है. चीन, उत्तर कोरिया और अमेरिका के पास परमाणु हमला कर सकने लायक मिसाइलें हैं. अमेरिका स्थित आर्म्स कंट्रोल असोसिएशन की नीति निदेशक केल्सी डेवनपोर्ट कहती हैं कि जैसे-जैसे इन मिसाइलों की संख्या बढ़ेगी, इनके इस्तेमाल होने का खतरा भी बढ़ेगा.