जाने-माने उपन्यासकार और लगभग आधा दर्जन फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर वेद प्रकाश शर्मा का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। वे 62 वर्ष के थे। आज सुबह उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। वेद प्रकाश शर्मा लगभग एक वर्ष से बीमार थे। उन्हें फेफड़े में संक्रमण हो गया था। मेरठ से मुंबई तक उनका इलाज चला। उन्होंने शुक्रवार की रात 11.50 बजे पर अंतिम सांस ली। परिवार में एक बेटा शगुन शर्मा और तीन बेटियां हैं। 06 जून 1955 को जन्मे वेद प्रकाश के ‘वर्दी वाला गुंडा उपन्यास ने धूम मचा दी थी। उन्होंने कुल 176 उपन्यास लिखे थे। इसके अलावा उन्होंने खिलाड़ी श्रृंखला की फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखी। मेरठ आए आमिर खान की जब उनसे मुलाकात हुई थी, तो उन्होंने एक फिल्म के लिए स्क्रिप्ट लिखने का आग्रह किया था और वेद प्रकाश उस पर काम कर रहे थे।नाम : वेदप्रकाश शर्मा
जन्म तिथि व स्थान: 6 जून 1955, (बिहरा) बुलंदशहर, उप्र।
शैक्षिक योग्यता : बीए व एलएलबी, एनएएस डिग्री कालेज।
प्रिय कलाकार: अमिताभ बच्चन, माला सिन्हा।
उपन्यास पर बनी पहली फिल्म: बहू की आवाज वर्ष 1985
पहला उपन्यास: ‘दहकता शहर वर्ष 1973
मनपसंद पर्यटन स्थल: मसूरी
पसंदीदा साहित्यकार व रचनाएं: मुंशी प्रेमचंद व कृति- नशा, पूस की रात, गोदान, दो बैलों की कथा।
अब तक लिखे उपन्यास : 176
परिवार में: पत्नी मधु शर्मा, तीन विवाहित बेटियां करिश्मा, गरिमा व खुशबू, बेटा शगुन व पुत्रवधू राधा।
पहली कॉपी पर पिता से पड़ी थी मार
वेद प्रकाश शर्मा अक्सर बताते थे कि हाईस्कूल के पेपर देकर वे गर्मी की छुट्टियों में पैतृक गांव बुलंदशहर के बिहरा में गए थे, तो साथ एक दर्जन उपन्यास ले गए। दो घंटे में एक नॉवेल पढऩे वाले वेद प्रकाश का वहां न कोई दोस्त था न किसी से कोई जान-पहचान। इस पर उन्होंने खुद लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने कई कॉपियां भर डालीं। मेरठ लौटने पर पिता को इस बात का पता चला तो वेद प्रकाश शर्मा को खूब मार पड़ी। मां ने पीटने के बारे में पूछा तो पिता कहने लगे कि ये बिगड़ गया है। उपन्यास लिखने लगा है। इसके बाद पिता ने उनकी लिखीं कापियां देखी तो वे मुस्कुरा उठे। कहने लगे कि तू तो अच्छा लिखता है। वे अक्सर अपने संस्मरणों में बताते थे कि पिता की इस हौसला अफजाई के बाद उन्हें आगे का रास्ता मिल गया।
शुरुआत में दूसरों के नाम से लिखा
शुरुआत में वेद प्रकाश शर्मा ने लंबे समय तक दूसरों के नाम से लिखा। जिनके नाम से वे लिखते थे वे चर्चित होने लगे थे। इसके बाद आग के बेटे (1973) के मुखपृष्ठ पर वेद प्रकाश शर्मा का पूरा नाम छपा लेकिन फोटो फिर भी नहीं छपी तो वे निराश हुए। . लेकिन उसी साल ज्योति प्रकाशन और माधुरी प्रकाशन दोनों ने उनके नाम के साथ फोटो भी छापना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनके उपन्यासों की मांग बढऩे लगी। उनके नॉवेल कैदी नंबर 100 की 2,50,000 प्रतियां छपीं थी। 1985 में अपना अपना प्रकाशन शुरू कर दिया। तुलसी पॉकेट बुक्स। इसके बाद तो उनके उपन्यासों ने सैकड़ा पार कर दिया।
लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रियता उन्हें 1993 में वर्दी वाला गुंडा से मिली। इस उपन्यास ने तहलका मचा दिया था। उनके दीवानों की संख्या बेशुमार बढ़ गई थी। पाठकों की इतनी चिट्ठियां उन्हें मिलती थीं कि सबको पढ़ पाना मुमकिन नहीं था। वे ऐसे सरोकार चुनते थे कि इसी सूझ-बूझ की वजह से वे हिंदीभाषी क्षेत्र में युवाओं के पसंदीदा लेखक बन गए थे। वेद प्रकाश चाहते थे कि उन्हें ऐसे लेखक के रूप में याद किया जाए जो लोगों का मनोरंजन करते हुए उन्हें सामाजिक संदेश दे गया।