उत्तराखंड में विकास योजनाओं के लिए बांज के पेड़ नहीं काटे जाएंगे। बांज के जंगल वाली जमीनें भी परियोजनाओं के लिए हस्तांतरित नहीं की जाएंगी। बहुत जरूरी होने पर उस जमीन के बदले ऐसी ही भूमि पौधे लगाने के लिए दी जाएगी जो बांज के लिए अनुकूल हो। केंद्रीय वन भूमि हस्तांतरण के क्षेत्रीय अधिकारियों और वन विभाग के बीच इसे लेकर सहमति बनी है। पीसीसीएफ राजीव भर्तरी ने बताया कि इस मामले में केंद्रीय वन भूमि हस्तांतरण के क्षेत्रीय अफसरों के साथ बैठक की गई। इस दौरान ये बात सामने आई कि जिन योजनाओं के लिए बांज वाली वन भूमि दी जाती है, अक्सर उनके बदले पौधरोपण अन्य प्रजातियों का कर दिया जाता है।
या ऐसी जगह जमीन दे दी जाती है जहां बांज उग ही नहीं सकता। इससे राज्य में बांज के जंगल कम हो रहे हैं। चूंकि बांज पहाड़ी क्षेत्रों में जल संरक्षण और पारिस्थतिकीय महत्व के लिहाज से सबसे अच्छी प्रजाति है, इसलिए इसका संरक्षण बेहद जरूरी है। पीसीसीएफ भर्तरी के अनुसार, इस पर बैठक में सहमति बनी कि विभिन्न योजनाओं के लिए बांज वाली वन भूमि नहीं दी जाएगी। बहुत जरूरी होने तक बांज के पेड़ ना काटने की कोशिश की जाएगी। अगर ये भी संभव नहीं होगा तो बांज के जितने पेड़ काटने पड़ेंगे, उनके बदले बांज का ही पौधरोपण करना होगा, जहां वह आसानी से उग पाए।
05 प्रजातियां पाई जाती हैं उत्तराखंड में बांज की
राज्य में बांज की पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें फलियांट (फनियांट, हरिंज बांच), बांज, रियांज (सांज बांज), तिलंज ( मोरू, तिलोंज बांच), बरस (खरू बांच) पाया जाता है। ये प्रजातियां 12 सौ से 35सौ मीटर तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
उत्तराखंड में जंगल
यूकेलिप्टस 01
सागौन 01
देवदार 01