वैदिक संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करने से पहले शुभ मुहूर्त देख्नने कि परंपरा है। मुहुर्त के हिसाब से कामकाज शुरू किया जाता है और उसके शुभाशुभ परिणाम का अंदाजा लगाया जाता है। शुभ मुहुर्त ग्रह, नक्षत्र, वार, तिथि और मास के हिसाब से तय किया जाता है, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ समय के लिए कुछ विशेष कार्यों का निषेध होता है। कुछ ऐसा ही पंचक के दौरान होता है।
मार्गर्शीष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 3 दिसंबर मंगलवार को पंचक शुरू हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र में पंचक के पांच दिनों को अशुभ माना जाता है इसलिए इन पांच दिनों में शुभ कार्यों का निषेध बताया जाता है। जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तो उस समय को पंचक कहते हैं।
पंचक
पंचक का प्रारंभ – 3 दिसंबर 12 बजकर 58 मिनट पर
पंचक की समाप्ति – 8 दिसंबर 1 बजकर 29 मिनट पर
पंचक में इन कार्यों का हैं निषेध
पंचक के दौरान मृत्यु और अंतिम संस्कार के विधि-विधान का खास ख्याल रखा जाता है। अंतिम संस्कार के समय पंचक के दोष के निवारण का ध्यान रखना होता है। पंचक दोष के निवारण की जानकारी गरुड़ पुराण में दी गई है। गरुड़ पुराण के अनुसार किसी प्रकांड पंडित से सलाह लेकर अंतिम संस्कार संपन्न किया जाना चाहिए। अंतिम संस्कार से पहले आटे या कुश के पांच पुतले बनाना चाहिए और शव के साथ उनको अर्थी में रखा जाना चाहिए। शव के साथ इन पुतलों का भी अंतिम संस्कार विधि-विधान से करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से बनने वाले पांच मृत्यु के योग टल जाते हैं।
पंचक के दौरान गृह संबंधी कार्यों का है निषेध
पंचक के दौरान घनिष्ठा नक्षत्र हो तो घास, लकड़ी ईंधन आदि एकत्रित नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से इन सामग्री में आग लगने का खतरा रहता है। इसलिए पंचक के दौरान अग्निशमन सामग्रियों के एकत्र करने का निषेध बताया है। पंचक के दौरान यदि रेवती नक्षत्र चल रहा है तो घर का निर्माण या ग्रह प्रवेश जैसा शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। रेवती नक्षत्र के पंचक में गृह संबंधी शुभ कार्य करने से ग्रहक्लेश से लेकर धन हानि तक के योग रहते हैं।
पंचक के दौरान चारपाई बनवाने का भी निषेध बताया गया है। पंचक के दिनों में चारपाई बनाने या बनवाने से गृहस्वामी के ऊपर बड़ा संकट आ सकता है। राजमार्त्तण्ड ग्रंथ में पंचक के दौरान यात्रा का भी निषेध बताया गया है। यात्रा जरूरी हो तो दक्षिण दिशा की यात्रा का त्याग करना चाहिए। दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है इसलिए पंचक के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा संकटों को लाने वाली होती है।