इलाहाबाद हाईकोर्ट में कोविड-19 वैक्सीनेशन की अनिवार्यता को एक याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई है। यह चुनौती राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी ने दी है। याचिका में पार्टी ने कहा है कि जिन लोगों में प्राकृतिक रूप से एंटी-बॉडीज विकसित हैं, उन्हें COVID-19 वैक्सीन न लगाया जाए। ऐसे लोगों को वैक्सीनेशन की अनिवार्यता से बाहर रखा जाए। हाईकोर्ट में यह याचिका लिस्टेड हो गई है। इसपर जल्द सुनवाई होगी। याचिका में भारत सरकार से यह मांग की गई है कि वो इस आशय का आदेश जारी करें कि जिनमें कोरोना के प्रति प्राकृतिक रूप से एंटीबाडीज विकसित हो गई हैं उन्हें वैक्सीनेशन से बाहर रखा जाए।
याचिका में तमाम शोधों का दिया गया है हवाला
याचिका में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधिकारियों के उन बयानों का हवाला दिया गया है जो समय समय पर वैक्सीनेशन की अनिवार्यता को लेकर दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि केवल वैक्सीन लगवाने वालों में ही कोरोना के प्रति एंटीबॉडीज विकसित होती हैं। याचिका में तर्क दिया गया है कि अभी तक शोध बताते हैं कि जिन लोगों को COVID-19 का टीका दिया गया है, उनमें से केवल 80 प्रतिशत लोगों में ही एंटीबॉडी विकसित हुई हैं। 20 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी विकसित ही नहीं हुई हैं।
याचिका में उन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बयानों का भी हवाला दिया गया है जिसमें एम्स के डॉक्टर और COVID -19 नेशनल टास्क फोर्स के सदस्य शामिल हैं। इन विशेषज्ञों ने भी कहा है कि ऐसे लोगों को टीका लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है, जिन्होंने COVID-19 संक्रमण का सामना किया है।
याचिका में इसके अलावा मीडिया रिपोर्टों का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि जो लोग कोरोना पॉजिटिव होकर ठीक हो गए हैं उनमें कई महीनों तक और संभवत: सालों तक COVID-19 एंटीबॉडीज सक्रिय रहते हैं। याचिका में उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा गया कि यह निर्णय करना जल्दबाजी होगी कि सभी लोगों को अनिवार्य रूप से कोरोना वैक्सीन दी जाए।
सार्वभौमिक राय बनने तक न हो टीकाकरण की अनिवार्यता
याचिका में कहा गया कि जिन लोगों ने अपने आप में विभिन्न तरीकों से और विभिन्न कारणों से कोरोना एंटीबॉडी विकसित की है, उन्हें अनिवार्य टीकाकरण कार्यक्रम से बाहर रखा जा सकता है। कम से कम उस समय तक जब तक कि टीके के विकास की प्रक्रिया को अंतिम रूप नहीं दिया जाता है। खास तौर पर इस संबंध में एक निश्चित और अंतिम रूप से सार्वभौमिक राय नहीं बन जाती।
याचिका में सरकार से प्रार्थना की गई है कि याचिकाकर्ता के तर्कों और तथ्यों का अवलोकन करने के बाद इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करें कि उन लोगों का टीकाकरण करने की आवश्यकता है या नहीं, जिनमें कोरोना एंटीबॉडी प्राकृतिक रूप से विकसित हैं।