रिजर्व बैंक के अधिकारियों की एक रिसर्च के मुताबिक जुलाई से सितंबर की तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ माइनस 8.6 फीसदी रही है यानी जीडीपी में 8.6 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. इसका मतलब यह है कि भारत के इतिहास में पहली बार मंदी आ चुकी है.
भारतीय रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारियों के मुताबिक भारत के इतिहास में पहली बार मंदी आ चुकी है. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी तिमाही में भी जीडीपी निगेटिव है. आइए जानते हैं कि क्या है इसका मतलब और यह क्यों बहुत चिंता की बात है?
रिजर्व बैंक के अधिकारियों की एक रिसर्च के मुताबिक जुलाई से सितंबर की तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ माइनस 8.6 फीसदी रही है यानी जीडीपी में 8.6 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि यह आधिकारिक आंकड़ा नहीं है और सरकार द्वारा आंकड़े अभी जारी होने हैं. इसके पहले इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में करीब 24 फीसदी की भारी गिरावट आई थी.
कोरोना संकट की वजह लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था की हालत खराब रही है. हालांकि, अब इसमें कुछ सुधार के संकेत दिखे हैं और वित्त मंत्रालय का कहना है कि तीसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ पॉजिटिव हो सकती है.
इस खबर के आते ही राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेता मोदी सरकार पर हमले करने लगे हैं और इसे सरकार की कमजोरी का नतीजा बताया जा रहा है.
क्या होती है मंदी
अर्थव्यवस्था में मान्य परिभाषा के मुताबिक अगर किसी देश की जीडीपी लगातार दो तिमाही निगेटिव में रहती है यानी ग्रोथ की बजाय उसमें गिरावट आती है तो इसे मंदी की हालत मान लिया जाता है. इस हिसाब से अगर दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी वास्तव में निगेटिव है तो यह कहा जा सकता है के देश में मंदी आ चुकी है.
क्या होता है मंदी से नुकसान
मंदी का मतलब यह है कि देश की अर्थव्यवस्था का पहिया रुक गया है. इससे रोजगार कम होते हैं और लोगों के पास बचत के लिए धन कम हो जाता है. मंदी की वजह से आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ जाती हैं. लोगों की आमदनी, औद्योगिक उत्पादन, थोक-खुदरा बिक्री और रोजगार सबमें गिरावट आ जाती है. मंदी लंबे समय तक चलने पर कारोबार और बैंक फेल होेने लगते हैं.
2008 की मंदी में ऐसे संभला था देश
गौरतलब है कि साल 2008 में जब दुनिया के कई देशों में मंदी आई थी, तब भी भारत मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा रहा. भारत के अपने बड़े बाजार, सरकारी खर्च, भारतीय कारोबारियों के निवेश, जनता के बचत, निवेश और भारी खपत की वजह से अर्थव्यवस्था टिकी रह पाई थी.
भारत की विशाल जनसंख्या अपने आप में एक बड़ा बाजार है. मनरेगा जैसी यूपीए सरकार की योजनाओं के माध्यम से भारी सरकारी खर्च किया जा रहा था. इस खर्च की बदौलत देश की ग्रामीण-गरीब जनता के पास खर्च करने लायक अच्छी रकम बच पाती थी और इससे खपत को बढ़ावा मिलता था.