आखिर क्यों है कोरोना वायरस का निमोनिया ज्यादा खतरनाक, जानें एक्सपर्ट्स की राय

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 कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे वैज्ञानिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पहले तो यह कैसे एकदम सटीक रूप से फैलता है, किन लोगों पर इसका भयानक असर पड़ता है, कैसे कोरोना मानव शरीर पर अपना भयानक असर छोड़ता है, क्यों एक चौथाई संक्रमितों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है। इसी तरह की एक समस्या है निमोनिया की।

यों तो निमोनिया दुनियाभर में आम है और इसकी दवाएं भी उपलब्ध हैं लेकिन, कोरोना जिस तरह का निमोनिया पैदा करता है वो बहुत घातक होता है और इसके होने पर मरीज की मौत की आशंका काफी अधिक बढ़ जाती है।

रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन के अध्यक्ष और दुनियाभर में मशहूर प्रो. जॉन विल्सन इस संबंध में शोध कर रहे हैं। उन्होंने काफी मरीजों के फेफड़ों के सीटी स्कैन कराए और सभी में एक तरह का खास पैटर्न उभरकर सामने आता है। कोरोना वायरस इंसान के फेफड़ों के बाहर से एक लेयर बना लेता है, जो एक प्रकार की जैली जैसा दिखता है। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, वैसे-वैसे यह फेफड़ों को फूलने की जगह को कम करता चला जाता है। इसका असर यह होता है कि शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई कम होती चली जाती है और अंत बहुत कष्टकारी होता है।

संक्रमितों को बांट सकते हैं 4 वर्गों में :

  • पहले वर्ग में वो संक्रमित होते हैं, जिनमें कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। इन्हें सब क्लीनिकल मरीज कहा जाता है। विभिन्न शोधों और अमेरिका की संचारी रोग संस्था (सीडीसी) का मत है कि लगभग 25 फीसद मरीजों को ऐसे वर्ग में रखा जा सकता है।
  • दूसरे वर्ग में वो संक्रमित आते हैं जिन्हें खांसी, सिरदर्द और बुखार की शिकायत होती है। प्रो. विल्सन बताते हैं कि ऐसे मरीजों को सांस लेने में भी हल्की दिक्कत महसूस होती है। इनका इलाज आइसोलेशन में रखकर या फिर अस्पताल के सामान्य वार्ड में रखकर किया जा सकता है। इनकी मृत्यु दर लगभग शून्य ही है।
  • तीसरे वर्ग में मरीजों को सांस लेने में भयानक दिक्कत होती है। ये बात तक नहीं कर पाते हैं। कई मानसिक दिक्कतें भी इन्हें पेश आती हैं, क्योंकि शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है। इन्हें आइसीयू में शिफ्ट करने की जरूरत होती है। इन मरीजों की मृत्यु की आशंका रहती है। इटली में ऐसे मरीजों की काफी मृत्यु हुई है।
  • चौथे वर्ग में ऐसे मरीजों को रखा जाता है जिन्हें निमोनिया हो जाता है। इनके बचने की संभावना कम होती है। प्रोफेसर विल्सन बताते हैं कि 6% से भी कम मरीजों में यह स्थिति देखी गई है। बुजुर्ग मरीजों में यह ज्यादा देखी गई है। वैसे भी साधारण निमोनिया भी बुजुर्गों में ज्यादा होता है।

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