घर खरीदने के लिए सबसे अहम चीज होती है प्रॉपर्टी के लोकेशन। अच्छी लोकेशन पर प्रॉपर्टी सिलेक्शन करने से आपके निवेश को फायदा मिलता है। कुछ लोग अपार्टमेंट्स पसंद करते हैं, जबकि कुछ को स्वतंत्र घरों (विला या किसी प्लॉट पर बने घर) में रहना अच्छा लगता है। आमतौर पर शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छू रही हैं, इसलिए ज्यादातर घर खरीददार अपार्टमेंट्स लेना पसंद करते हैं। ये विला या अन्य घरों की तुलना में सस्ते होते हैं। मकानआईक्यू आपको दोनों के बीच फर्क बताने जा रहा है, जो आपके फ्लैट या घर खरीदने के फैसले में मदद करेगा। सुविधाओं के लिए चुकाना पड़ता है पैसा: अपार्टमेंट खरीदने के बाद कुछ चीजें साथ में मिलती हैं, जैसे सिक्योरिटी, पार्किंग, पावर बैकअप, वाटर सिस्टम और फायर सेफ्टी। लेकिन विला या अन्य में यह सब अलग से लगवाना पड़ता है। इसमें पैसे भी ज्यादा खर्च होते हैं। अनुमान के मुताबिक एक विला के आसपास इन सब सुविधाओं के लिए कुल संपत्ति मूल्य का 2-3 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है। इसमें इनवर्टर या जनरेटर के रूप में छोटा पावर बैक अप और पानी की मोटर शामिल होती है। लेकिन सिक्योरिटी फिर भी चिंता का विषय रहती है। अगर आपका विला किसी कॉलोनी में स्थित है तो वहां लोग मिलकर रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशन (आरडब्ल्यूए) बना सकते हैं। यह संस्था सिक्योरिटी और अन्य मुद्दों का निपटारा करती है। दूसरी ओर अपार्टमेंट सोसाइटी में डिवेलपर पहले दो या तीन वर्षों के लिए ये सब सुविधाएं मुहैया कराता है। बाद में इन सबका जिम्मा आरडब्ल्यूए के हवाले कर दिया जाता है। मॉर्गेज (गिरवी): अगर आप होम लोन लेकर संपत्ति खरीद रहे हैं तो विला या अन्य की तुलना में अपार्टमेंट के लिए लोन पाना ज्यादा आसान है। बैंक अकसर मंजूर किए गए प्रोजेक्ट्स की सूची तैयार कर लेते हैं, जहां से खरीददार का लोन आसानी से अप्रूव हो जाता है। वहीं स्वतंत्र घरों के मामले में बैंक सख्त जांच करने के बाद ही लोन देते हैं। स्वतंत्र संपत्तियों के मामले में उधार इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि इसमें बेहिसाब नकद का हिस्सा है। इसके अलावा स्वतंत्र घर के मूल्य का पता लगाना भी मुश्किल है। अगर आप एक प्लॉट लेने की सोच रहे हैं तो यह जान लें कि भारत के बैंक आपको प्लॉट के कुल मूल्य का 60-70 प्रतिशत लोन ही देंगे। बाकी के पैसे का इंतजाम आपको खुद ही करना होगा। इसमें स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज भी शामिल हैं। हालांकि बैंक इस राशि से ऊपर कंस्ट्रक्शन लोन भी देते हैं। अगर अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी ले रहे हैं तो : अगर एेसा करने की सोच रहे हैं तो इसमें कई चुनौतियां हैं। लेकिन अगर आप अपार्टमेंट प्रोजेक्ट में निवेश करेंगे तो समस्याएं बहुत हद तक कम हो जाएंगी। अगर आप एक प्लॉट लेकर उस पर घर बनाना चाहते हैं तो यह लंबा, बोझिल और थकाऊ काम होगा। लेकिन यहां आपके पास फायदा यह है कि निश्चित राशि और तय समयसीमा में संपत्ति का निर्माण कर सकते हैं। वहीं अपार्टमेंट प्रोजेक्ट में आप बिल्डर की दया पर निर्भर हैं। यह उसकी मर्जी है कि वह समय पर काम पूरा कर पाता है या नहीं। नकदी की कमी, खराब आर्थिक हालात, कच्चे माल और मजदूरों की लागत में बढ़ोतरी और खराब बिक्री कई बार डिवेलपर के राजस्व को गिरा देती हैं, जिस कारण कंस्ट्रक्शन में देरी होती है। बिक्री/पोजेशन के बाद: देखभाल की लागत: जब आप अपने घर में रहना शुरू कर देते हैं तो प्रॉपर्टी की लगातार देखभाल, साफ-सफाई, कंस्ट्रक्शन और रिपेयरिंग जरूरी होती है। हालांकि यह देखा गया है कि स्वतंत्र घरों में देखभाल की जरूरत अपार्टमेंट प्रॉपर्टी के मुकाबले ज्यादा होती है। अपार्टमेंट प्रोजेक्ट्स में आरडब्ल्यूए के पास देखभाल का जिम्मा होता है। रिहायशी परिसर में चूंकि सभी संस्थानों का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए सुविधाओं की लागत बहुत ज्यादा घट जाती है। स्वतंत्र संपत्ति जैसे बंगले में इस सुविधाओं में जरूरी से कम वक्त लगता है। बिक्री: असेट के रूप में प्रॉपर्टी बिकने में ज्यादा वक्त लेती है। अगर यह स्वतंत्र प्रॉपर्टी हो तो यह और भी ज्यादा मुश्किल काम हो जाता है। इंडस्ट्री के अनुमान के मुताबिक मार्केट में अपार्टमेंट्स की मांग ज्यादा है। टीयर-2 शहरों में भी एेसा ही विकास देखा गया है। डिवेलपर्स अब प्लॉट डिवेलपमेंट्स का मिश्रण कर अपार्टमेंट प्रोजेक्ट ला रहे हैं। अगर बाद में आप प्रॉपर्टी बेचने पर विचार करते हैं तो अपार्टमेंट बेचना ज्यादा आसान है। अपार्टमेंट्स के भीतर ही टू बेडरूम और थ्री बेडरूम अपार्टमेंट्स की डिमांड ज्यादा है। तो अगर आपने प्रॉपर्टी खरीदने का सोच लिया है तो इन मानकों पर जल्द काम करना शुरू कर दें। चूंकि आप एक विकल्प चुनेंगे, इसलिए यह मानकर चलें कि प्रॉपर्टी में निवेश का कोई सही वक्त नहीं होता।