ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के 650 ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है, ये ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। यदि इसी रफ्तार से ग्लेशियर पिघलते रहे तो आने वाले कुछ सालों में हिमालय के अधिकतर ग्लेशियर पानी में तब्दील हो जाएंगे। बढ़ते पानी की वजह से जमीन पर रहने वालों को इससे अधिक समस्या का सामना करना पड़ेगा |साइंस एडवांसेज में बुधवार को प्रकाशित अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि हिमालय के ग्लेशियर साल 2000 के बाद से हर साल 1.5 फीट बर्फ खो रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो हिमालय की बर्फ पिछले 25 साल की अवधि की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से पिघल रही है। इन ग्लेशियर से ८ बिलियन टन पीने योग्य पैदा किये जाने इतना पानी पिघल चूका है | इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरे की ओर इशारा किया है। अभी तक ग्लेशियरों को जल मीनार कहा जाता था। इसी के साथ जिन जगहों पर सूखा पड़ता था वहां के लोगों के लिए इन ग्लेशियरों को बीमा पॉलिसी माना जाता था मगर जिस तरह से ये ग्लेशियर पिघल रहे हैं उससे खतरा दुगुना हो रहा है। फरवरी में, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा निर्मित एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि सदी के अंत तक हिमालय अपनी बर्फ के एक तिहाई हिस्से तक को खो सकता है। 150 वर्षों में औसत वैश्विक तापमान पहले ही 1 डिग्री बढ़ गया है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। गर्म मौसम में पहाड़ों से पिघलने वाली बर्फ का पानी नदियों में आकर मिल जाता है जिसके कारण वहां पर पानी के लेवल में इजाफा हो रहा है। अभी तक इन्हीं ग्लेशियरों से निकलकर आने वाले पानी से फसलों की सिंचाई की जा रही है। इनसे पीने का पानी भी मिलता है और उनसे सिंचाई भी की जा रही है। ग्लेशियरों का पीछे हटना बढ़ते वैश्विक तापमान के सबसे भयावह परिणामों में से एक है। हिमालय में, ग्लेशियरों के नष्ट होने से दो गंभीर खतरे हैं। कम समय में पिघलने वाले ग्लेशियर पहाड़ पर ही छोटे-छोटे तालाब बनाते हैं, यदि इनमें पानी की मात्रा बढ़ेगी तो इससे अधिक नुकसान होगा। यहां बसे छोटे गांव आदि खत्म हो जाएंगे। लंबी अवधि में ग्लेशियर की बर्फ के नुकसान का मतलब है कि एशिया के भविष्य के पानी का नुकसान। यदि इन ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने की दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो लंबे समय में अत्यधिक गर्मी और सूखे के समय पानी मुहैया करा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। इन ग्लेशियरों के पिघलने का बड़ा कारक तापमान का बढ़ना था जबकि विशाल पर्वत श्रृंखला में तापमान औसत से अधिक था। पहले के वर्षों की तुलना में 2000 और 2016 के बीच काफी तेजी ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसका नतीजा दिख रहा है। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से वैज्ञानिक काफी चिंतित है।