17 फीसदी क्षेत्र है वनाच्छादित, लेकिन वन भूमि पर अतिक्रमण में भी जिला अव्वल
बांकेगंज। पर्यावरण के लिहाज से खीरी जिला आज भी अन्य जगहों की अपेक्षा काफी समृद्ध है। समूचे में प्रदेश में औसतन नौ फीसदी वनाच्छादन है। इसके मुकाबले अकेले खीरी में 17 प्रतिशत जंगल है। बावजूद इसके यहां जल और वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।
करीब 50 साल पहले तक खीरी जिले के जंगल और भी समृद्ध थे। जंगल के विशाल क्षेत्र के अलावा जिले भर में हरे-भरे बाग-बगीचों की भरमार थी। 1977 के पहले तक खीरी के जंगलों का विकास कार्यों के लिए दोहन किया गया।
देश भर में रेल पटरियां बिछाने में इस्तेमाल होने वाले स्लीपरों की आपूर्ति खीरी के जंगल से होती थी। यहां के बेशकीमती साल के जंगल तरक्की की भेंट चढ़ते रहे। यहां की वन संपदा का अनियमित तरीके से दोहन हुआ। बावजूद इसके वर्तमान में 17 फीसदी जंगल सुरक्षित बच गया। यदि यहां की वन संपदा का इतना दोहन न हुआ होता तो आज की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
खीरी जिले के 7680 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में 2201.75 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। इसके अलावा सड़कों के किनारे लगे पेड़-पौधे और बाग-बगीचे अलग हैं। सामाजिक वानिकी के तहत लगाए गए पेड़-पौधे भी हैं। जिले में वायु
प्रदूषण फिलहाल भले ही कम हो, लेकिन जल प्रदूषण की स्थिति काफी खराब हो चुकी है। खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक और खरपतवार नाशक दवाओं का असर यहां के पानी पर पड़ रहा है। उल्ल जैसी कई छोटी नदियों की हालत यह है कि उनका पानी पीने के योग्य तो दूर नहाने लायक भी नहीं बचा है। बढ़ता पर्यावरण असंतुलन दैवी आपदाओं के रूप में सामने आ रहा है।
हरियाली पर खतरा अब भी नहीं टला
यह जानकर ताज्जुब हो सकता है कि खीरी जिले में 2201.75 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से करीब 9300 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर अवैध कब्जा है। यहां हरियाली उजाड़ कर खेती की जा रही है, जबकि यह अतिक्रमित वन भूमि वन क्षेत्र के आंकड़ों में दर्ज है। तमाम प्रयासों के बावजूद यह वन भूमि अवैध कब्जे से मुक्त नहीं कराई जा सकी है। खीरी जिला न केवल वन संपदा से, बल्कि अपने जल स्रोतों से भी मालामाल है। इससे यहां की जैव विविधता समृद्ध होती है। लेकिन बढ़ता जल प्रदूषण भी एक नए खतरे को जन्म दे रहा है।
खीरी जिले की वन संपदा का वर्ष 1977 से पहले काफी दोहन हुआ है, लेकिन दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के बाद इस पर अंकुश लगा। इसके चलते पर्यावरण संतुलन के लिहाज से खीरी जिले की स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों से कहीं बेहतर है।
प्रदेश सरकार हर साल करोड़ों पौधे लगाकर पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है। पर्यावरण के प्रति आम लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। – संजय पाठक, मुख्य वन संरक्षक/फील्ड निदेशक, दुधवा टाइगर रिजर्व
80.70 लाख पौधरोपण से होगा खीरी की धरती का शृंगार
लखीमपुर खीरी। प्रदेश में वन आच्छादन के मामले में खीरी पहले पायदान पर है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ों का कटान भी धड़ल्ले से जारी है। इस वर्ष 80.70 लाख पौधरोपण का लक्ष्य है, जबकि पिछले वर्ष 67.14 लाख पौधे लगाए गए थे। पर्यावरण दिवस पर शनिवार को सभी वन रेंज में 151-151 पौधे रोपे जाने का लक्ष्य रखा गया है।
उत्तर खीरी वन प्रभाग में 2020-21 में परमिट के जरिए 1195 पेड़ों का कटान हुआ था, जबकि इस वर्ष अप्रैल-मई में 209 पेड़ों का कटान हो चुका है। इस प्रभाग में सबसे अधिक नौ रेंज होने के कारण कटान भी अधिक होता है, जिसमें अवैध कटान से लेकर बाढ़-कटान में भी काफी पेड़ नष्ट हो जाते हैं।
दक्षिण खीरी वन प्रभाग की चार रेंज में 2020-21 में परमिट के जरिए 57 पेड़ों का कटान हुआ है। पेड़ों के अवैध तरीके से कटान के मामले दोनों प्रभागों में सामने आते रहे हैं, जिस पर वन विभाग पूरी तरह नकेल कसने में नाकाम रहा है।
पौधरोपण के बड़े लक्ष्य से वन आच्छादन में आया सुधार
उत्तर खीरी वन प्रभाग में मानसूनी सीजन के दौरान बाढ़-कटान जैसी प्राकृतिक आपदा से हरियाली को नुकसान होता है। कटान की जद में आकर हजारों पेड़-पौधे हर साल नष्ट होते हैं। वहीं हर साल बड़े लक्ष्य के साथ पौधरोपण कराया जा रहा है, जिससे वन आच्छादन में आने वाली कमी की भरपाई हो जाती है। पिछले वर्ष वन विभाग समेत अन्य विभागों ने मिलकर 67.14 लाख पौधे लगाए थे, जबकि इस वर्ष सरकार ने 80.70 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। जून-जुलाई में पौधारोपण कराने के लिए अभियान चलाया जाएगा।
छत एवं दीवारों पर उगे पौधों को कर रहे संरक्षित
लखीमपुर खीरी। पर्यावरण संरक्षण के साथ धरती के सौंदर्य के लिए गायत्री परिवार युवा प्रकोष्ठ पिछले कई साल से माता भगवती देवी वृक्षगंगा अभियान चला रहा है। युवा प्रकोष्ठ के लोग रास्तों के किनारे से लेकर खाली जगहों पर छायादार एवं फलदार पौधे लगा रहे हैं। इसके साथ दीवार आदि पर उगने वाले पीपल, बरगत, पकरिया आदि पौधों के संरक्षण के लिए अनूठी पहल शुरू की है। इसके तहत युवा प्रकोष्ठ सदस्य पुराने भवनों की छतों एवं दीवार पर उगे इस तरह के पौधों को उखाड़कर दूसरी जगहों पर रोपित कर रहे हैं। अनुराग मौर्य बताते हैं कि अभियान के तहत अब तक करीब एक हजार से अधिक पौधे लगाए हैं, जिनकी निरंतर निगरानी भी होती है।
घर को ही बनाया बगीचा
गोला निवासी डॉ. रवींद्रनाथ वर्मा ने बताया कि राघव कुंज स्थित अपने आवास पर आधे से अधिक हिस्से पर बगीचा तैयार किया, जिसके अंदर वाटर रिचार्ज सिस्टम बनाया है, जिससे घर से निकलने वाला एक बूंद भी पानी खराब नहीं होता है। वहीं हरिहरपुर स्थित अपनी आठ बीघा जमीन को कबीर कुटी और चेतना केंद्र के रूप में विकसित की है।
- डॉ. रवींद्रनाथ वर्मा, पर्यावरण विद् एवं एसीएमओ
दो वर्ष से दृढ़ संकल्पित होकर नीम के पौधों का रोपण अभियान शुरू किया है। दो हजार से अधिक पौधे रोपित करवा चुके हैं। प्रत्येक व्यक्ति को संकल्प लेकर अपने दरवाजे या लान में एक पौधा अवश्य रोपित करना चाहिए। – राजेंद्र अग्निहोत्री, एडवोकेट
पर्यावरण संरक्षण में पेड़ पौधों, वन, बाग, बगीचों का विशेष महत्व है। जो प्राण वायु आक्सीजन देने के साथ प्रदूषण अवशोषित करते हैं। सरकार को बड़े स्तर पर पौधारोपण कार्यक्रम शुरू कर उनके संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाने चाहिए।