दिल्ली एनसीआर सहित देश के कई शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को राज्यों और केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगानी पड़ी। दिल्ली-नोएडा सहित आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण आपातकालीन स्थिति में पहुंच गया है।
दिल्ली में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि बाल दिवस पर भी स्कूलों की छुट्टी करनी पड़ी। इससे पहले दिवाली के बाद स्कूलों को बंद करना पड़ा था।
फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ी
उत्तर भारत की बिगड़ती वायु गुणवत्ता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता था कि आज से 30 साल पहले फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 80 से 90 फीसदी धूम्रपान करने वाले होते थे। उनमें से ज्यादातर पुरुष होते थे जिनकी आयु 50 से 60 साल के आस-पास होती थी।
लेकिन, पिछले छह वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के आधे से ज्यादा मरीज धूम्रपान नहीं करते हैं। बड़ी बात यह है कि उनमें से लगभग 40 फीसदी महिलाएं हैं। इन मरीजों की उम्र भी पहले कम हैं। मरीजों में आठ फीसदी तो 30 से 40 साल की उम्र के हैं।
फेफड़ों के कैंसर के कारण
एक रिपोर्ट के अनुसार, फेफड़े के कैंसर के बढ़ते रोगियों का कारण डीजल इंजन से निकलने वाला जहरीला धुआं, विनिर्माण के दौरान उड़ने वाली धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, पराली का धुआं बन रहा है। इनके कारण हवा में हानिकारक प्रदूषक तत्वों की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ गई है।
इलाज के दौरान इन मरीजों के फेफड़ों में जमा काले रंग का पदार्थ भी देखा गया। जो इतना जहरीला है कि जल्द इलाज नहीं होने पर मरीज की जान भी ले सकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए हवा गुणवत्ता मानक से 11 गुना ज्यादा जहरीली हवा भारत की है। नासा और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के मामले में भारत और चीन क्रमश दुनिया के नंबर एक और दो देश हैं।
डेटा से पता चलता है कि एशिया में 420 करोड़ से अधिक लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा की तुलना में कई गुना अधिक गन्दी हवा में सांस ले रहे हैं। पहले चीन ने खराब वायु गुणवत्ता ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरीं, लेकिन समय के साथ चलते हुए चीन ने अपनी हवा को शुद्ध करने के लिए बहुत काम किया है।
वहीं वायु प्रदूषण के मामले में अब भारत चीन से भी बदतर स्थिति में आ गया है। 2016 के आंकड़ों के अनुसार, भारत और चीन में सुरक्षित सीमा से ऊपर सांस लेने वाले लोगों की समान संख्या है लेकिन भारत में प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक संख्या में हैं। भारत में कम से कम 14 करोड़ लोग डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं।
द लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2017 में वायु प्रदूषण के कारण 12 लाख 40 हजार भारतीयों की मौत हुई। मृतकों में आधे मरीज ऐसे थे जिनकी उम्र 70 साल से कम थी। प्रदूषण के कारण देश की औसत जीवन प्रत्याशा 1.7 वर्ष कम हो गई है।
दुनिया के 10 मुख्य प्रदूषित शहरों में से सात भारत के
- गुरुग्राम
- गाजियाबाद
- फरीदाबाद
- भिवाड़ी
- नोएडा
- पटना
- लखनऊ
- (ब्लूमबर्ग रिपोर्ट)