साल 2017 जा रहा है. लखनऊ पुलिस ने साल भर में क्या खोया, क्या पाया का लेखा जोखा बना तो मुकेश मिश्रा हत्याकांड साल की सबसे बडी मर्डर मिस्ट्री बना है.
राजधानी पुलिस की नामसमझी, लापरवाही की वारदात बनकर सामने आ गई. क्राइम डिटेक्शन में कहावत है शुरुआत में पुलिस ने लापरवाही बरती तो वारदात का खुलासा पुलिस के लिय़े नामुमकिन बन जाता है.
लखनऊ में दवा व्यवसायी हत्याकांड पुलिस की ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है. 5 महीने बाद पुलिस को हत्यारोपी नहीं बल्कि साजिशकर्ता और साजिश को बेपर्दा करने लिये 5 लोगों का नार्को टेस्ट कराना पड़ रहा है. हालांकि पुलिस के लिये नार्को टेस्ट से कोई मदद मिलेगी, कहना मुश्किल है.
27 जुलाई 2017 को जानकीपुरम थानाक्षेत्र के मुकेश मिश्रा हत्याकांड लखऩऊ पुलिस के लिये साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन गया है. लखनऊ पुलिस 5 महीने बाद भी इस वारदात के खुलासे की तो दूर हत्या की वजह को तक नहीं तलाश पाई है.
जानकीपुरम विस्तार के डिवाइडर से मुकेश मिश्रा की कार टकराई थी. मुकेश यहीं खून से लथपथ मिला. दुकान से घर जा रहे मुकेश के बड़े भाई करूणेश ने मुकेश को देखा तो वो आनन—फानन में घायल मुकेश को लेकर ट्रामा सेंटर भागे.
पुलिस शुरूआत में इस दुघर्टना मान रही थी लेकिन ट्रामा सेंटर में इलाज के दौरान मुकेश के शरीर में मिली चोट और गोली ने इसको हत्या साबित कर दिया. मामला हत्या का बना तो मुकेश के भाई ने उसकी पत्नी सारिका मिश्रा पर अपनी बुटीक के सामने हत्या कराने का आरोप लगाकर एफआईआर करा दी. इसके पीछे भाई करूणेश की अपनी वजह है.
वहीं दूसरी ओर शादी के 4 साल में ही मुकेश जैसे होनहार, मेहनतकश, जीवनसाथी का साथ छूटना पत्नी को आज भी परेशान करता है. पत्नी सारिका के अपने आरोप है..
वारदात की गुत्थी को सुलझाने में उलझी लखनऊ पुलिस अब मुकेश की पत्नी, उसके भांजे के साथ और भाई, भाभी और भतीजे का नार्को टेस्ट कराने जा रही है.
मामले में एसएसपी दीपक कुमार कहते हैं कि शुरुआत में मामला दुर्घटना का पता चला, उसके बाद परिजनों जिनमें मृतक के भाई और मृतक की पत्नी ने एक दूसरे पर हत्या का आरोप लगाया. इस केस में मोटिव क्या है, उसकी सत्यता का पता लगाने के लिए हम नार्को टेस्ट कराने जा रहे हैं.